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________________ ४८६ अनुयोगद्वार सूत्र जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वझवणा। से तं णोआगमओ दव्वज्झवणा। से तं दव्वज्झवणा। भावार्थ - ज्ञ शरीर - भव्य शरीर-व्यतिरिक्त - द्रव्यक्षपणा का क्या स्वरूप है? ज्ञ शरीर - भव्यशरीर-व्यतिरिक्त-द्रव्य क्षपणा का स्वरूप ज्ञ शरीर - भव्य शरीरव्यतिरिक्त द्रव्य आय के सदृश है यावत् इसके लौकिक, कुप्रावचनिक एवं लोकोत्तरिक भेद एवं लौकिक के तीन भेद यावत् मिश्र पर्यन्त ज्ञातव्य हैं (अंततः) लोकोत्तरिक का स्वरूप भी (द्रव्य आय) के समान योजनीय है। इस प्रकार द्रव्यक्षपणा के अन्तर्गत नोआगमतः द्रव्यक्षपणा के ज्ञ शरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यक्षपणा का वर्णन परिसमाप्त होता है। __ भावक्षपणा से किं तं भावज्झवणा? भावज्झवणा दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २। से किं तं आगमओ भावज्झवणा? आगमओ भावज्झवणा जाणए उवउत्ते। से तं आगमओ भावज्झवणा। भावार्थ - भावक्षपणा कितने प्रकार की बतलाई गई है? यह आगमतः एवं नोआगमतः के रूप में दो प्रकार की प्रज्ञप्त हुई है। आगमतः भावक्षपणा का क्या स्वरूप है? क्षपणा इस पद का उपयोग युक्त ज्ञाता आगमतः भावक्षपणा रूप है। यह आगमतः भावक्षपणा का स्वरूप है। से किं तं णोआगमओ भावज्झवणा? णोआगमओ भावज्झवणा दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - पसत्था य १ अपसत्था य । भावार्थ - नोआगमतः भावक्षपणा के कितने भेद बतलाए गए हैं? यह प्रशस्त और अप्रशस्त के रूप में दो प्रकार के कहे गए हैं। से किं तं पसत्था? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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