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________________ ४८० अनुयोगद्वार सूत्र भावार्थ - भव्यशरीर-द्रव्य-आय का क्या स्वरूप है? योनि रूप जन्मस्थान से निःसृत होकर किसी जीव का शरीर (भविष्य में वीतराग प्ररूपित धर्म को सीखेगा) इत्यादि वर्णन जैसा द्रव्यावश्यक के अध्ययन में आया है, यहाँ भी गृहीत है यावत् यह भव्यशरीर द्रव्य आय का स्वरूप है। से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए? जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - लोइए १ कुप्पावयणिए २ लोगुत्तरिए ३। भावार्थ - ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य आय कितने प्रकार की होती है? ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य आय तीन प्रकार की प्रज्ञप्त हुई है - १. लौकिक २. कुप्रावचनिक और ३. लोकोत्तरिक। से किं तं लोइए? लोइए तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - सचित्ते १ अचित्ते २ मीसए य ३। । भावार्थ - लौकिक (ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त) आय कितने प्रकार की होती है? यह सचित्त, अचित्त और मिश्र के रूप में त्रिविध रूप में प्रज्ञप्त हुई हैं। से किं तं सचित्ते? सचित्ते तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - दुपयाणं १ चउप्पयाणं २ अपयाणं ३। दुपयाणं - दासाणं-दासीणं, चउप्पयाणं - आसाणं हत्थीणं, अपयाणं - अंबाणं अंबाडगाणं आए। सेत्तं सचित्ते। भावार्थ - सचित्त (लौकिक) आय का क्या स्वरूप है? सचित्त (लौकिक) आय तीन प्रकार की होती है - १. द्विपद आय २. चतुष्पद आय तथा ३. अपद आय। ___इनमें दास-दासियों की प्राप्ति - आय द्विपद आय, घोड़ों, हाथियों की प्राप्ति चतुष्पद आय तथा आम, आँवला के वृक्ष आदि की प्राप्ति अपद आय के अन्तर्गत है। यह सचित्त आय का स्वरूप है। से किं तं अचित्ते? १२ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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