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________________ आय - विवेचन ४७६ से किं तं आगमओ दव्वाए? आगमओ दव्वाए - जस्स णं ‘आए' त्ति पयं सिक्खियं, ठियं, जियं, मियं, परिजियं जाव कम्हा? 'अणुवओगो' दव्वमिति कटु। णेगमस्स णं जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइया ते दव्वाया जाव सेत्तं आगमओ दव्वाए। भावार्थ - आगमतः द्रव्य आय का क्या स्वरूप है? जिसने (गुरु से) 'आय' इस पद को सीख लिया है, स्थित, जित, मित और परिजित किया है (द्रव्य अध्ययन के वर्णनानुसार यहाँ वर्णन ग्राह्य है) यावत् कैसे? वह उपयोग रहित होने से द्रव्य है। नैगमनय से जितने उपयोग रहित हैं उतने ही आगमतः द्रव्य हैं यावत् यह द्रव्य आय का स्वरूप है। से किं तं णोआगमओ दव्वाए? णोआगमओ दव्वाए तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - जाणयसरीरदव्वाए १ भवियसरीरदव्वाए २ जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए ३। भावार्थ - नोआगमतः द्रव्य-आय कितने प्रकार की कही गई है? नोआगमतः द्रव्य-आय तीन प्रकार की कही गई है - १. ज्ञ शरीर द्रव्य आय, २. भव्यशरीर द्रव्य आय एवं ३. ज्ञ शरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य आय। से किं तं जाणयसरीरदव्वाए? जाणयसरीरदव्वाए - 'आय' पयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुयचावियचत्तदेहं जहा दव्वज्झयणे जाव सेत्तं जाणयसरीरदव्वाए। भावार्थ - ज्ञ शरीर द्रव्य आय का क्या स्वरूप है? _____ जिसने आय पद के अधिकार को जाना है, उसके चेतनारहित, प्राणशून्य, अनशन द्वारा मृत देह को शय्या-संस्तारकगत देखकर कोई कहे इत्यादि वर्णन द्रव्याध्ययन के समान ही यहाँ ज्ञातव्य है यावत् यह ज्ञ शरीर द्रव्य आय का स्वरूप है। - से किं तं भवियसरीरदव्वाए? भवियसरीरदव्वाए - जे जीवे जोणिजम्मणणिक्खंते जहा दव्वज्झयणे जाव सेत्तं भवियसरीरदव्वाए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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