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________________ समवतार निरूपण ४६३ ++ + + + + ६. प्रत्याख्यान अध्ययन त्याग-तितिक्षामूलक गुण धारण करने का अर्थाधिकार है। यह अर्थाधिकार का स्वरूप है। विवेचन - वक्तव्यता और अर्थाधिकार में अन्तर - वक्तव्यता और अर्थाधिकार में अन्तर यह है कि अधिकार - अध्ययन के आदि पद (शब्द) से लेकर अन्तिम पद तक सम्बन्धित एवं अनुगत रहता है, वैसे ही जैसे पुद्गलास्तिकाय में प्रत्येक परमाणु में मूर्तत्व अनुस्यूत रहता है जबकि वक्तव्यता देशादि-नियत होती है। (१५०) समवतार निरूपण से किं तं समोयारे? समोयारे छविहे पण्णत्ते। तंजहा - णामसमोयारे १ ठवणासमोयारे २ दव्वसमोयारे ३ खेत्तसमोयारे ४ कालसमोयारे ५ भावसमोयारे। भावार्थ - समवतार के कितने प्रकार होते हैं? यह छह प्रकार का प्ररूपित हुआ है - १. नामसमवतार २. स्थापनासमवतार ३. द्रव्यसमवतार ४. क्षेत्रसमवतार ५. कालसमवतार और ६. भावसमवतार। - णामठवणाओ पुव्वं वण्णियाओ जाव सेत्तं भवियसरीरदव्वसमोयारे। भावार्थ - नाम और स्थापना का वर्णन पूर्व में किए गए वर्णन के अनुसार ग्राह्य है यावत् भव्यशरीर द्रव्यसमवतार पर्यन्त वर्णन (द्रव्यावश्यक में आए विवेचन के अनुसार) पूर्ववत् ग्राह्य है। से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वसमोयारे? . जाणयसरीरभविथ-सरीरवइरित्ते दव्वसमोयारे तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - आयसमोयारे १ परसमोयारे २ तदुभयसमोयारे ३। सव्वदव्वा वि णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति। परसमोयारेणं जहा कुंडे बदराणि। तदुभयसमोयारे जहा घरे खंभो आयभावे य, जहा घडे गीवा आयभावे य। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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