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________________ वक्तव्यता : विभिन्न नयदृष्टियाँ के लिए स्व-स्व समय और अन्यों के लिए पर पर समय होता है। यह गाथा स्व- परसमयवक्तव्यता का बड़ा ही सुन्दर एवं समीचीन उदाहरण है। वक्तव्यता : विभिन्न नयदृष्टियाँ इयाणी को णओ कं वत्तव्वयं इच्छइ ? तत्थ णेगमसंगहववहारा तिविहं वत्तव्वयं इच्छंति, तंजहा - ससमयवत्तव्वयं १ परसमयवत्तव्वयं २ ससमयपरसमयवत्तव्वयं ३ | उज्जुसुओ दुविहं वत्तव्वयं इच्छइ, तंजहा - ससमयवत्तव्वयं १ परसमयवत्तव्वयं २ । तत्थ णं जा सा ससमयवत्तव्वया सा ससमयं पविट्ठा, जा सा परसमयवत्तव्वया सा परसमयं पविट्ठा, तम्हा दुविहा वत्तव्वया, णत्थि तिविहा वत्तव्वया । तिण सणया एवं ससमयवत्तव्वयं इच्छंति, णत्थि परसमयवत्तव्वया । कम्हा ? जम्हा परसमए अणट्ठे अहेऊ असब्भावे अकिरिए उम्मग्गे अणुवएसे मिच्छादंसणमितिकट्टु । तम्हा सव्वा ससमयवत्तव्वया, णत्थि परसमयवत्तव्वया, णत्थि ससमयपरसमयवत्तव्वया । सेत्तं वत्तव्वया ॥ भावार्थ - इनमें (तीनों में से) कौन नय किस वक्तव्यता को स्वीकार करता है? नैगम, संग्रह और व्यवहारनय तीनों प्रकार की वक्तव्यता को स्वीकार करते हैं, यथा स्वसमय वक्तव्यता, परसमय वक्तव्यता और स्वसमय परसमय वक्तव्यता । ऋजुसूत्रनय दो प्रकार की वक्तव्यता स्वीकार करता है - १. स्वसमय वक्तव्यता और २. परसमय वक्तव्यता । (क्योंकि) जो (स्वसमय-परसमय वक्तव्यता रूप तृतीय भेद में स्थित ) स्वसमय वक्तव्यता है, वह प्रथम भेद स्वसमय वक्तव्यता में और (तृतीय भेद में स्थित ) परसमय वक्तव्यता द्वितीय भेद परसमय वक्तव्यता में अन्तर्भूत हो जाती है। इसी कारण वक्तव्यता द्विविध है, त्रिविध नहीं । तीनों (शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत) शब्द नय एक स्वसमयवक्तव्यता को ही स्वीकार करते हैं, परसमय वक्तव्यता को नहीं मानते क्योंकि परसमय में अनर्थ, अहेतु, असद्भाव, Jain Education International ४६१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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