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संख्यातप्रमाण विवेचन
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“सम्यक् ख्यायते यथा सा संख्या" - जिसके द्वारा किसी वस्तु का भलीभाँति ख्यापन हो, परिमाण-ज्ञापन हो, वह संख्या है। ____संख्यातुं योग्यं संख्यं" - जो संख्यात करने योग्य - गिनने योग्य होता है, उसे संख्य कहा जाता है। जैन परंपरा में प्रचलित संख्येय और संख्यात का भाव यह व्यक्त करता है। शंख शब्द द्वीन्द्रिय जीव विशेष का बोधक है। शंख, सूक्ति आदि के स्पर्श और रसन ही इन्द्रिय होते हैं। शंख शब्द का एक अर्थ ईकाई, दहाई आदि क्रम से चलने वाली लौकिक संख्याओं की अंतिम संख्या से है।
अतएव संख्या प्रमाण के संदर्भ में जहाँ-जहाँ जिस अर्थ की संगति है, वहां-वहां वैसे-वैसे रूप में योजनीय है।
से किं तं णामसंखा? .णामसंखा - जस्स जं जीवस्स वा जाव सेत्तं णामसंखा।
भावार्थ - नामसंख्या का क्या स्वरूप है?
जिसका जीव से अथवा अजीव से यावत् (तदुभयों-जीवों-अजीवों का 'संख्या' ऐसा नामकरण किया जाता है) वह नामसंख्या प्रमाण का स्वरूप है। .
से किं तं ठवणासंखा? ठवणासंखा - जंणं कट्टकम्मे वा पोत्थकम्मे वा जाव सेत्तं ठवणासंखा। णामठवणाणं को पइविसेसो? णामं आवकहिये, दवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा होज्जा। भावार्थ - स्थापनासंख्या का क्या स्वरूप होता है? जिस काष्ठकर्म में, पुस्तककर्म में यावत् ‘संख्या' रूप में स्थापना करना स्थापना संख्या है। नाम और स्थापना में क्या अन्तर है? नाम यावत्कथिक होता है परन्तु स्थापना इत्वरिक या यावत्कथिक हो सकती है। से किं तं दव्वसंखा? दव्वसंखा दुविहा पण्णत्ता।
तंजहा - आगमओ य १ णोआगमओ य २ जाव से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वसंखा?
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