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अनुयोगद्वार सूत्र
योगों का त्याग है। यही कारण है कि जब साधक चारित्राराधना में या संयम में दीक्षित होता है तो वह 'सव्वं सावज्जं जोगं, पच्चक्खामि - सर्व सावा योगं प्रत्याख्यामि' - अर्थात् मैं समस्त सावध योगों का परित्याग करता हूँ। यह भाषा परभाव से, स्वभाव में आने का आख्यान है।
चारित्रमोहनीय के उपशम, क्षय व क्षयोपशम से संपद्यमान आत्मविशुद्धि की दृष्टि से चारित्र एक ही प्रकार का है। किंतु जब विभिन्न अपेक्षाओं से चारित्र पर चिंतन-विवेचन किया जाता है तब उसके अनेक भेद हो जाते हैं। यह भेद विवक्षा चारित्र के स्वरूप के विशुद्धिकरण, स्पष्टीकरण की दृष्टि से वास्तव में उपयोगी है।
विविध दृष्टिकोणों से किए गए चारित्र के विभिन्न भेदों का संक्षेप में सामायिक चारित्र, छेदोपस्थापनीय चारित्र, परिहारविशुद्धि चारित्र, सूक्ष्मसंपराय चारित्र एवं यथाख्यात चारित्र - इन पाँच भेदों में समावेश हो जाता है। इनका संक्षेप में विश्लेषण इस प्रकार है -
१. सामायिक चारित्र - व्याकरण की दृष्टि से सम+आय-समाय, के आगे 'इक' प्रत्यय लगाने से 'सामायिक' शब्द बनता है। यह व्याकरण की तद्वित प्रक्रिया के अन्तर्गत समाविष्ट है। सम का अर्थ समत्व, समता, आत्मस्वरूप या आत्म-स्वभाव है। आय का अर्थ प्राप्ति है। जिस साधना द्वारा विभावगत आत्मा स्वभाव में आती है - कार्मिक आवरणों से आछन्न या कर्मबंधनों से प्रतिबद्ध आत्मा कर्मयुक्त होकर अपना शुद्ध स्वरूप प्राप्त करती है, वह सामायिक है। __जब निषेध रूप (Negative) विवेचन किया जाता है तब विविध रूप में त्याग-प्रत्याख्यान स्वीकार किए जाते हैं, जिनसे आत्म-संश्लिष्ट कर्ममालिन्य अपगत होता जाता है। वह त्यागप्रत्याख्यानात्मक साधना संवर और निर्जरा के रूप में गतिशील होती है। त्याग-प्रत्याख्यान के साथ-साथ वहाँ स्वाध्याय, ध्यान आदि का भी विशेष रूप से विधान है।
सामायिक साधना का व्यावहारिक रूप पाँच महाव्रतों का मन, वचन, काय द्वारा कृत, कारित, अनुमोदित के रूप में पालन करना है।
सामायिक के इत्वरिक व यावत्कथिक के रूप में दो भेद कहे गए हैं। इत्वरिक - अल्पकालिक का सूचक है, यावत्कथिक - यावत्जीवन का परिचायक है। ऐसी मान्यता है कि भरत क्षेत्र एवं ऐरवत क्षेत्र में प्रथम व अंतिम तीर्थंकरों के काल में नवदीक्षित साधु में जब तक महाव्रतों का आरोपण नहीं किया जाता, अर्थात् केवल सर्व सावध योग के परित्याग की प्रतिज्ञा दिलाई जाती है, वह चारित्र इत्वरिक कहा जाता है। लोक भाषा में इसे 'छोटी दीक्षा' कहा
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