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अनुयोगद्वार सूत्र
इनके भलीभांति अध्ययन के बिना वेदों का यथार्थ बोध हो नहीं सकता।
चारों वेदों के चार उपवेद माने गए हैं जो क्रमशः आयुर्वेद, गान्धर्ववेद, धनुर्वेद व अर्थशास्त्र के रूप में विख्यात हैं। आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र है। गान्धर्ववेद संगीत शास्त्र का बोधक है। धनुर्वेद में शस्त्र विज्ञान का समावेश है। अर्थशास्त्र में राजनीति, अर्थशास्त्र, समाज विज्ञान, शासनाविधि इत्यादि समाविष्ट है।
वेदों के चार उपांग माने गए हैं। कहा गया है - पुराणन्यायमीमांसाः, धर्मशास्त्रांग मिश्रिताः। वेदाः स्थानानि विधानां धर्मस्य च चतुर्दश॥ (याज्ञवल्क्य स्मृति १-३) पुराण, न्याय दर्शन, मीमांसा दर्शन एवं धर्मशास्त्र ये चार उपांग है। चार उपवेद, छह अंग तथा चार उपांग ये मिलकर चौदह विद्यास्थान कहे गए हैं।
वेदों में जिन जटिल और रहस्यपूर्ण विषयों का जो वर्णन है, उसे भलीभांति स्वायत्त करने के लिए इन सबका सम्यक् अध्ययन आवश्यक है। सायण, माधव आदि वेद के भाष्यकारों ने इन्हीं के आधार पर वेदों की व्याख्या की। सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान् मैक्समूलर ने उनका अंग्रेजी में अनुवाद किया है।
से किं तं लोउत्तरिए?
लोउत्तरिए - जंणंइमं अरहंतेहिं भगवंतेहिंउप्पण्णणाणदंसणधरेहितीयपच्चुप्पण्णमणागयजाणएहिं तिलुक्कवहियमहियपूइएहिं सव्वण्णूहिं सव्वदरिसीहिं पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं, तंजहा - आयारो जाव दिहिवाओ।
शब्दार्थ - उप्पण्णणाणदंसणरेहिं - उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक, तीयपचुप्पण्णमणागयजाणएहिं - भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता, तिलुक्कवहियमहियपूइएहिं - तीनों लोकों के (जीवों द्वारा) अवलोकित, वंदित, पूजित, सव्वण्णूहिं - सर्वज्ञों द्वारा, सव्वदरिसीहिंसर्वदर्शियों द्वारा, पणीयं - प्रणीत, दुवालसंगं - द्वादशांग रूप, गणिपिडगं - गणिपिटक।
भावार्थ - लोकोत्तरिक आगम का क्या स्वरूप है?
केवलज्ञान दर्शन के धारक, भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता, तीनों लोकों के प्राणियों द्वारा अवलोकित, वंदित, पूजित, सर्वज्ञों, सर्वदर्शियों (तीर्थंकरों) द्वारा प्रणीत द्वादशांग रूप गणिपिटक लोकोत्तरिक आगम हैं। जैसे आचारांग यावत् दृष्टिवाद रूप बारह अंग, आगम हैं।
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