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अनुयोगद्वार सूत्र
से किं तं विसेसदिटुं?
विसेसदिटुं- से जहाणामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं बहूणं पुरिसाणं मझे पुष्वदिटुं पच्चभिजाणेजा-'अयं से पुरिसे' बहूणं करिसावणाणं मज्झे पुव्वदिटुं करिसावणं पच्चभिजाणेजा-'अयं से करिसावणे' । तस्स समासओ तिविहंगहणं भवइ, तंजहाअतीयकालगहणं १ पडुप्पण्णकालगहणं २ अणागयकालगहणं ३।
शब्दार्थ - कंचि - किसी, पच्चभिजाणेजा - प्रत्यभिज्ञात कर लेता है - पहचान लेता है, समासओ - संक्षेप में, गहणं - ग्रहण करना, अतीयकालगहणं - भूतकालः ग्रहण, पडुप्पण्ण- प्रत्युत्पन्न-वर्तमान, अणागय - अनागत-भविष्य।
भावार्थ - विशेषदृष्ट का क्या स्वरूप है?
जैसे - कोई पुरुष बहुत से पुरुषों के बीच में पहले देखे हुए पुरुष को पहचान लेता है कि यह वही पुरुष है, बहुत सी स्वर्णमुद्राओं के बीच (पूर्वदृष्ट) किसी स्वर्णमुद्रा को प्रत्यभिज्ञात कर लेता है कि यह वही स्वर्णमुद्रा है, यह विशेषदृष्ट अनुमान है। 'संक्षेप में वह तीन प्रकार से गृहीत होता है - १. अतीतकाल २. वर्तमान और ३. भविष्यत्काल के आधार पर।
अतीतकाल से किं तं अतीयकालगहणं?
अतीयकालगहणं - उत्तणाणि वणाणि णिप्फण्णसस्सं वा मेइणिं पुण्णाणि य कुंडसरणईदीहियातडागाइं पासित्ता तेणं साहिजइ जहा - सुवुट्ठी आसी। सेत्तं अतीयकालगहणं।
शब्दार्थ - उत्तणाणि - उगे हुए तृणों - घास से युक्त, णिप्फण्णसस्सं - निष्पन्नसस्यधान्य से परिपूर्ण, मेइणिं - मेदिनी, पुण्णाणि - परिपूर्ण, कुंडसरणईदीहियातडागाइं - कुंडसरोवर-नदी-दीर्घिका (वापि)-तालाबों को, पासित्ता - देखकर, साहिजइ - सिद्ध होता है, सुवुट्ठी - सुवृष्टि-अच्छी वर्षा, आसी - हुई थी।
भावार्थ - भूतकाल से गृहीत अनुमान का क्या स्वरूप है?
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