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________________ बद्ध - मुक्त वैक्रिय शरीर : संख्या भावार्थ - हे भगवन्! औदारिक शरीर कितने प्रकार के प्रतिपादित हे आयुष्मन् गौतम ! औदारिक शरीर दो प्रकार के कहे गए हैं। और २. मुक्त औदारिक शरीर । - उनमें जो बद्ध शरीर हैं, वे संख्यात हैं। कालापेक्षया वे असंख्यात उत्सर्पिणियों एवं अवसर्पिणियों द्वारा अपहृत होते हैं एवं क्षेत्रापेक्षया असंख्यात लोक प्रमाण हैं। जो मुक्त हैं, वे अनंत हैं। कालतः वे अनंत उत्सर्पिणियों एवं अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं तथा क्षेत्रतः अनंत लोक प्रमाण हैं । द्रव्यतः वे मुक्त औदारिक शरीर अभवसिद्धिक अभव्य जीवों से अनंत गुणे और सिद्धों के अनंतवें भाग जितने हैं । - Jain Education International हुए For Personal & Private Use Only हैं? - ३७१ विवेचन - इस सूत्र में बद्ध तथा मुक्त औदारिक शरीरों की चर्चा आई है। उसमें बद्ध . औदारिक शरीर का तात्पर्य बंधे हुए या संबंधित हैं। जो शरीर प्रश्न करने के समय ( वर्तमान में) जीव के साथ संबद्ध हैं, उन्हें बद्ध औदारिक शरीर कहा जाता है। जिनकों जीव ने पूर्वभवों में ग्रहीत कर छोड़ दिया है, वे मुक्त औदारिक शरीर हैं। उन दोनों ही के संख्याक्रम का इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है। यहाँ कालतः असंख्यात अवसर्पिणियों - उत्सर्पिणियों द्वारा अपहृत किए जाने का जो उल्लेख हुआ है, उसका तात्पर्य यह है कि कालापेक्षया बद्ध औदारिक शरीरों की संख्या के विषय में यह ज्ञातव्य है कि उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल के एक-एक समय में एक - एक औदारिक शरीर का अपहरण किया जाए तो समस्त औदारिक शरीरों को अपहृत किये जाने में असंख्यात उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी व्यतीत हो जाएँ। असंख्यात के भी असंख्यात भेद माने जाते हैं। १. बद्ध औदारिक शरीर अतएव बद्ध औदारिक शरीर भी असंख्यात ही हैं। मुक्त औदारिक शरीरों के संदर्भ में कालापेक्षया यह परिज्ञेय है कि यदि उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के एक-एक समय में एक-एक मुक्त औदारिक शरीर को अपहृत किया जाय तो उनके अपहृत किए जाने में अनंत उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी व्यतीत हो जाएं । किन्तु इस प्रकार से बद्ध एवं मुक्त शरीरों का अपहार किसी ने किया नहीं है, मात्र समझाने के लिए बताया गया है। बद्ध - मुक्त वैक्रिय शरीर : संख्या केवइया णं भंते! वेडव्वियसरीरा पण्णत्ता ? www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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