________________
३७०
अनुयोगद्वार सूत्र
___हे आयुष्मन् गौतम! इनके चार शरीर कहे गए हैं - १. औदारिक २. वैक्रिये ३. तेजस और ४. कार्मण।
बेइदियतेइंदियचउरिंदियाणं जहा पुढवीकाइयाणं। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा वाउकाइयाणं।
भावार्थ - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के भी पृथ्वीकायिक जीवों के समान (तीन शरीर) जानने चाहिये।
पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों के शरीर (चार) भी वायुकायिक जीवों के समान जानने चाहिये। मणुस्साणं भंते! कइ सरीरा पण्णत्ता?
गोयमा! पंच सरीरा पण्णत्ता। तंजहा - ओरालिए १ वेउव्विए २ आहारए ३ तेयए ४ कम्मए ५। वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं।
भावार्थ - हे भगवन्! मनुष्यों के कितने शरीर कहे गए हैं?
हे गौतम! इनके १. औदारिक २. वैक्रिय ३. आहारक ४. तैजस और ५. कार्मण के रूप में पांच शरीर बतलाए गए हैं। वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के शरीर, नारकों के समान (तीन-तीन) जानने चाहिए।
पांच शरीर : संख्याक्रम केवइया णं* भंते! ओरालियसरीरा पण्णत्ता?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - बद्धेल्लया य १ मुक्केल्लया य २। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं असंखिजा, असंखिजाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेजा लोगा। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ अभवसिद्धिएहिं अणंतगुणा, सिद्धाणं अणंतभागो।
शब्दार्थ - बद्धेल्लया - बद्धलग्न - बद्ध, मुक्केल्लया - मुक्तलग्न - मुक्त, अवहीरंतिअपहत होते हैं, खेत्तओ - क्षेत्र की अपेक्षा से, अभवसिद्धिएहिं - अभवसिद्धिक - अभव्य।
पाठान्तर - * कइविहा णं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org