________________
अनुयोगद्वार सू
गोयमा ! चउव्विहा पण्णत्ता । तंजहा - धा १ खंधदेसा २ खंधपएसा ३
परमाणुपोग्गला ४ ।
३६२
णं भंते! किं संखिज्जा असंखिज्जा अणंता ?
गोयमा ! णो संखिज्जा, णो असंखिज्जा, अनंता ।
सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - णो संखिज्जा, णो असंखिज्जा, अनंता ? गोयमा ! अनंता परमाणुपोग्गला, अणंता दुपएसिया खंधा जाव अणंता अणतपएसिया खंधा।
से एएणणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - णो संखिज्जा, णो असंखिज्जा, अनंता ।
भावार्थ - हे भगवन्! रूपी अजीवद्रव्य कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
हे आयुष्मन् गौतम! ये चार प्रकार के परिज्ञापित हुए हैं १. स्कंध २. स्कंधदेश ३. स्कंधप्रदेश और ४. परमाणु पुद्गल ।
हे भगवन्! ये (स्कंध आदि) क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनंत हैं?
हे आयुष्मन् गौतम! ये न संख्यात हैं, न असंख्यात हैं (वरन् ) अनंत हैं।
हे भगवन्! ये न संख्यात हैं, न असंख्यात हैं, (केवल ) अनंत हैं, ऐसा किस कारण से कहा गया है ?
हे आयुष्मन् गौतम! परमाणु पुद्गल अनंत हैं, द्विप्रदेशिक स्कंध अनंत हैं यावत् अनंतप्रदेशिक स्कंध अनंत हैं। आयुष्मन् गौतम ! इसी कारण से, ये संख्यात नहीं हैं, असंख्यात नहीं हैं, अनंत हैं, ऐसा कहा गया है।
विवेचन - इस जगत् में मुख्य रूप से दो ही द्रव्यों का अस्तित्व है, जो जीव और अजीव के नाम से विख्यात है। "जीवतीति जीवः " के अनुसार जो जीवित रहता है, चैतन्ययुक्त होता है, वह जीव है। जीव को ही आत्मा कहा जाता है। आत्मन् शब्द अत् धातु से बना हैं, जो गमनार्थक है । जितनी गमनार्थक धातुएँ हैं, वे ज्ञानार्थक भी हैं। जानना जिसका स्वभाव है, वह आत्मा है। ज्ञान चेतना का लक्षण है। अचेतन पदार्थों में ज्ञान का अस्तित्व नहीं होता, इसीलिए वे जड़ कहे जाते हैं।
जीव के अतिरिक्त अजीव नामक तत्त्व के अन्तर्गत वे मूर्त-अमूर्त सभी पदार्थ समाविष्ट हो जाते हैं, जो इस जगत् में व्याप्त हैं, जीव द्वारा प्रयोज्य हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org