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________________ ३५४ शब्दार्थ मिट्ठम - - अनुयोगद्वार सूत्र अधस्तन-अधस्तन, अजहण्णमणुक्कोसेणं अजघन्य - अनुत्कृष्ट । भावार्थ - हे भगवन्! अधस्तन - अधस्तन ग्रैवेयक विमानों में देवों की स्थिति कियत्कालिक बतलाई गई है ? - हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः बाईस सागरोपम की और उत्कृष्टतः तेईस सागरोपम परिमित होती है। हे भगवन्! अधस्तनमध्यम ग्रैवेयक विमानों के देवों की स्थिति कितनी कही गई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी कालस्थिति जघन्यतः तेईस सागरोपम की और उत्कृष्टतः चौबीस सागरोपम की कही गई है। हे भगवन्! अधस्तन-उपरिम ग्रैवेयक विमानों की स्थिति कियत्कालिक प्रज्ञप्त हुई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्यतः स्थिति चौबीस सागरोपम की और उत्कृष्टतः पच्चीस सागरोपम प्रमाण है। हे भगवन्! मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक विमानों की स्थिति कितनी बतलाई गई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः पच्चीस सागरोपम की और उत्कृष्टतः छब्बीम सागरोपम परिमित है। Jain Education International हे भगवन्! मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक विमानों में देवों की स्थिति कितनी कही गई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्यतः स्थिति छब्बीस सामरोपम की और उत्कृष्टतः स्थिति सत्ताईस है। 'हे भगवन्! मध्यम-उपरिम ग्रैवेयक विमानों में देवों की स्थिति कितनी बतलाई गई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः सत्ताईस सागरोपम की और उत्कृष्टतः अट्ठाईस सागरोपम परिमित होती है। हे भगवन्! उपरिम-अधस्तन ग्रैवेयक विमानों में देवों की स्थिति कियत्कालिक कही गई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी कालस्थिति जघन्यतः अट्ठाईस सागरोपम की और उत्कृष्टतः उनतीस सागरोपम प्रमाण है। हे भगवन्! उपरिम- मध्यम ग्रैवेयक विमानों में देवों की स्थिति कितनी प्रज्ञप्त हुई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्यतः स्थिति उनतीस सागरोपम की और उत्कृष्टतः तीस सागरोपम परिमित होती है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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