SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४८ अनुयोगद्वार सूत्र गोयमा! जहणेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउभागपलिओवमं । ताराविमाणाणं भंते! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता । गोयमा! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं साइरेगं अट्ठभागपलि ओवमं । शब्दार्थ - साइरेगं - सातिरेक- कुछ अधिक, अब्भहियं - अधिक । भावार्थ - हे भगवन्! ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितनी बतलाई गई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः पल्योपम का आठवाँ भाग की और उत्कृष्टतः पल्योपम से एक लाख वर्ष अधिक की होती है। हे भगवन्! ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कियत्कालिक बतलाई गई है?. हे आयुष्मन् गौतम! इनकी काल स्थिति जघन्यतः पल्योपम के आठवें भाग जितनी और उत्कृष्टतः अर्द्धपल्योपम से पचास हजार वर्ष अधिक की कही गई है। हे भगवन् चन्द्रविमानों के देवों की कालस्थिति कितनी बतलाई गई है? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः पल्योपम के चतुर्थ भाग की एवं उत्कृष्टतः पल्योपम से एक लाख वर्ष अधिक की कही गई है। हे भगवन्! चन्द्रविमानों की देवियों की कालस्थिति के विषय में पूछा । हे आयुष्मन् गौतम! इनकी कालस्थिति जघन्यतः पल्योपम के चतुर्थ भाग परिमित और उत्कृष्टतः अर्ध पल्योपम से पचास हजार वर्ष अधिक की होती है । हे भगवन्! सूर्य विमानों के देवों की कालस्थिति के विषय में पूछा । हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः पल्योपम के ल्योपम से एक हजार वर्षों अधिक की होती है। हे भगवन्! सूर्यविमान की देवियों की स्थिति के विषय में पृच्छा की । हे आयुष्मन् गौतम! इनकी कालस्थिति जघन्यतः पल्योपम के चतुर्थ भाग परिमित और उत्कृष्टतः अर्द्धपल्योपम से पाँच सौ वर्ष अधिक की होती है । चतुर्थ भाग जितनी और उत्कृष्टतः हे भगवन्! ग्रहविमानों के देवों की स्थिति कियत्कालिक प्रज्ञापित हुई है ? हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः पल्योपम का चतुर्थ भाग की और उत्कृष्टतः एक पल्योपम की होती है। हे भगवन्! ग्रहविमानों की देवियों की स्थिति के विषय में प्रश्न है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy