SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३६ । अनुयोगद्वार सूत्र गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं एगूणपण्णासं राइंदियाई अंतोमुहुत्तूणाई। चउरिंदियाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा। अपजत्तगचउरिंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त। ... पजत्तगचउरिंदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा अंतोमुहत्तूणा। भावार्थ - हे भगवन्! द्वीन्द्रियों की स्थिति कियत्काल परिमित होती है? हे आयुष्मन् गौतम! द्वीन्द्रियों की स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः बारह वर्ष की होती है। हे अपर्याप्तक द्वीन्द्रियों के विषय में पूछा। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्यतः और उत्कृष्टतः स्थिति अन्तर्मुहूर्त परिमित होती है। पर्याप्तक द्वीन्द्रियों की स्थिति के विषय में प्रश्न किया। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त एवं अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त कम बारह संवत्सरों (वर्षों) की होती है। त्रीन्द्रियों के विषय में पूछा। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्टतः उनपचास रात-दिनों की होती है। अपर्याप्तक त्रीन्द्रियों के विषय में प्रश्न किया। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्यतः और उत्कृष्टतः - दोनों ही स्थितियाँ अन्तर्मुहूर्त परिमित होती है। पर्याप्तक त्रीन्द्रियों के विषय में प्रश्न किया। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त कम उनपचास रात-दिनों की होती है। चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति कियत्काल परिमित प्रज्ञप्त हुई है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy