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________________ ३३२ अनुयोगद्वार सूत्र पजत्तगबायर-पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई। भावार्थ - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितनी बतलाई गई है? हे आयुष्मन् गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः बाईस हजार वर्ष बतलाई गई है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के औधिक (सामान्य), अपर्याप्तक एवं पर्याप्तक जीवों - तीनों के विषय में प्रश्न किया गया। . आयुष्मन् गौतम! इन तीनों की जघन्यतः और उत्कृष्टतः आयु अन्तर्मुहूर्त परिमित होती है। बादर पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति के संदर्भ में पृच्छा की गई है। .. हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः बाईस हजार वर्षों की होती है। हे अपर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति के संदर्भ में प्रश्न है। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्यतः और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त परिमित होती है। पर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति के विषय में पूछा। हे आयुष्मन् गौतम! इनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट स्थिति बाईस हजार वर्ष से अन्तर्मुहर्त कम होती है। एवं सेसकाइयाण वि पुच्छावयणं भाणियव्वं। आउकाइयाणं-जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्साई। सुहुमआउकाइयाणं ओहियाणं अपजत्तगाणं पजत्तगाणं तिण्ह वि-जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। बायरआउकाइयाणं जहा ओहियाणं। अपजत्तगबायरआउकाइयाणं-जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। पजत्तगबायरआउकाइयाणं-जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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