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________________ पांच स्थावर निकायों की स्थिति ३३१ गोयमा! जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं देसूणं पलिओवमं। एवं जहा णागकुमारदेवाणं देवीण य तहा जाव थणियकुमाराणं देवाणं देवीण य भाणियव्वं। .. भावार्थ - हे भगवन्! असुरकुमारों की स्थिति कियत्कालिक बतलाई गई है? हे आयुष्मन् गौतम! असुरकुमारों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्टतः एक सागरोपम से कुछ अधिक है। हे भगवन्! असुरकुमार देवियों की स्थिति कितनी प्रज्ञप्त हुई है? हे आयुष्यमन् गौतम! असुरकुमार देवियों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष परिमित तथा उत्कृष्टतः साढे चार पल्योपम की बताई गई है। हे भगवन्! नाग कुमारों की स्थिति कितनी प्रज्ञप्त हुई है? हे आयुष्यमन् गौतम! नाग कुमारों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष तथा उत्कृष्टतः देश (कुछ) कम दो पल्योपम की है। हे भगवन्! नागकुमार देवियों की स्थिति कियत्कालिक बतलाई गई है? हे आयुष्मन् गौतम! नागकुमार देवियों की स्थिति जघन्यतः दस हजार वर्ष और उत्कृष्टतः देश (कुछ) कम पल्योपम होती है। ____ इस प्रकार जितनी (ऊपर) नागकुमार देवों और देवियों की स्थिति बतलाई गई है, उतनी स्थिति सुपर्ण कुमार यावत् स्तनितकुमार देवों और देवियों की कथनीय है। पांच स्थावर निकायों की स्थिति पुढवीकाइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई। सुहम-पुढवीकाइयाणं ओहियाणं अपजत्तयाणं पज्जत्तयाणं च। तिसु वि पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । बायरपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं.अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई। अपजत्तग-बायरपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहणेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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