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नैरयिकों की स्थिति
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अप्पजत्तगरयणप्पहापुढविणेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। पजत्तगरयणप्पहा पुढविणेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एगं सागरोवमं अंतोमुहुत्तूणं।
सक्करप्पहापुढविणेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहण्णेणं एगं सागरोवमं, उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाई। भावार्थ - हे भगवन्! रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति कितनी प्रज्ञप्त हुई है?
हे आयुष्मन् गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्यतः दस सहस्र वर्ष और उत्कृष्टतः एक सागरोपम बतलाई गई है।
हे भगवन्! रत्नप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्तक नारकों की स्थिति कितनी कही गई है?
हे आयुष्मन् गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्तक नारकों की स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त बतलाई गई है।
हे भगवन्! रत्नप्रभा पृथ्वी के पर्याप्तक नारकों की स्थिति कितनी बतलाई गई है?
हे आयुष्मन् गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के पर्याप्तक नारकों की स्थिति कम से कम दस हजार • वर्ष से अन्तर्मुहूर्त कम और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त कम एक सागरोपम बतलाई गई है।
हे भगवन्! शर्कराप्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति कियत् काल पर्यन्त बतलाई गई है?
हे आयुष्मन् गौतम! शर्करा प्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति कम से कम एक सागरोपम और अधिक से अधिक तीन सागरोपम परिमित बतलाई गई है।
एवं सेसपुढवीसु पुच्छा भाणियव्वा।
वालुयप्पहापुढविणेरइयाणं-जहण्णेणं तिण्णि सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्तसागरोवमाइं।
पंकप्पहापुढविणेरइयाणं - जहण्णेणं सत्तसागरोवमाइं, उक्कोसेणं दससागरोवमाई।
धूमप्पहापुढविणेरइयाणं-जहण्णेणं दससागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमाई।
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