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अनुयोगद्वार सू
एएहिं सुहुमेहिं अद्धापलिओवमसागरोवमेहिं, किं पओयणं?. एएहिं सुहमेहिं अद्धापलिओवमसागरोवमेहिं णेरड्यतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवाणं आउयं मविज्जइ ।
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भावार्थ - इन सूक्ष्म अद्धा पल्योपमों, एवं सूक्ष्म अद्धा सागरोपमों का क्या प्रयोजन है ? इन सूक्ष्म अद्धा पल्योपमों एवं सूक्ष्म अद्धा सागरोपमों से नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों के आयुष्य को मापा जाता है।
विवेचन - सूक्ष्म अद्धा पल्योपम का संक्षिप्त में स्वरूप इस प्रकार समझना चाहिए इसका वर्णन पूर्व वर्णित सूक्ष्म उद्धार पल्योपम के समान समझना चाहिए, फर्क इतना है कि उन असंख्याता बालाग्र खंडों में से एक-एक बालाग्र खंड को सौ-सौ वर्षों से निकालने पर जितने काल में वह कुआँ पूरा खाली होवे उतने काल को एक सूक्ष्म अद्धा पल्योपम कहते हैं। इसका परिणाम असंख्याता कोटा कोटी वर्ष का होता है। इसको दस कोड़ाकोड़ी से गुणा करने पर एक सूक्ष्म अद्धा पल्योपम होता है। इन पल्योपमों सागरोपमों के द्वारा चार गति के जीवों का आयुष्य मापा जाता है। आयुष्य को मापने में सर्वत्र ऋतुसंवत्सर आदि ही काम में लिए जाते हैं। इसके लिए कालानुपूर्वी के वर्णन में काल प्रमाण में जो पक्ष, मास आदि बताएं हैं उन्हीं के हिसाब से माप जानना चाहिए।
(१४०)
नैरयिकों की स्थिति
रइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा! जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई । भावार्थ - हे भगवन्! नैरयिकों की स्थिति कियत्कालिक बतलाई गई है ?
हे आयुष्मन् गौतम ! नैरयिकों की स्थिति जघन्यतः दस हजार वर्ष की और उत्कृष्टतः तैंतीस सागरोपम की कही गई है।
रयणप्पहापुढविणेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा! जहणेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ।
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