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________________ ३२६ अनुयोगद्वार सूत्र गाहा - एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी भविज दसगुणिया। . तं वावहारियस्स अद्धासागरोवमस्स, एगस्स भवे परिमाणं॥३॥ भावार्थ - उनमें जो व्यावहारिक अद्धा पल्योपम है, वह अपने नाम के अनुरूप आशय लिए हुए है। जैसे एक योजन चौड़ा, एक योजन लम्बा और एक योजन गहरा कुआँ हो, जिसकी परिधि तीन गुनी से कुछ अधिक हो। उस कुएं को एक दिन, दो दिन, तीन दिन यावत् सात दिन-रात के करोड़ों बालाग्रों से अच्छी तरह, खचाखच भर दिया जाए। (वे परस्पर इतनी सघनता से सटे हों कि) उनको अग्नि जला नहीं सके यावत् (किसी भी तरह वे) विध्वंस न किए जा सकें, शीघ्रता से सड़ाए गलाए न जा सकें। उसे कुएँ में से सौ-सौ वर्षों के अन्तराल से एक-एक बालाग्र खण्डों को निकालने पर जितने समय में वह कुआँ बालारों के खण्डों से रहित होता है, क्षीण, नीरज, निर्लेप एवं निष्ठित होता है, वह व्यावहारिक अद्धा पल्योपम है। गाथा - इस प्रकार दस कोटि-कोटि व्यावहारिक अद्धा पल्योपम के परिमाण जितना एक व्यावहारिक सागरोपम होता है॥३॥ एएहिं वावहारियअद्धापलिओवमसागरोवमेहिं किं पओयणं? एएहि वावहारिय अद्धापलिओवमसागरोवमेहिं णस्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पण्णवणा पण्णविजइ। सेत्तं वावहारिए अद्धापलिओवमे। भावार्थ - इन व्यावहारिक अद्धा पल्योपमों एवं सागरोपमों का क्या प्रयोजन है? इन व्यावहारिक अद्धा पल्योपमों एवं सागरोपमों का कोई प्रयोजन नहीं है। इनसे केवल प्रज्ञापन-कथन रूप प्ररूपणा सिद्ध होती है। यह व्यावहारिक अद्धा पल्योपम का स्वरूप है। विवेचन - व्यावहारिक अद्धा पल्योपम का संक्षिप्त में स्वरूप इस प्रकार समझना चाहिएइसका वर्णन व्यावहारिक उद्धार पल्योपम के समान समझना चाहिए, फर्क इतना है कि उन बालानों को सौ-सौ वर्षों से एक-एक बालाग्र को निकालने से जितने काल में वह कुआँ पूरा खाली होवे उतने काल को व्यावहारिक अद्धा पल्योपम कहते हैं। इसका परिमाण भी असंख्याता कोटि वर्ष का समझना चाहिए। इसको दस कोड़ाकोड़ी से गुणा करने पर एक व्यावहारिक अद्धा सागरोपम होता है। इन पल्योपम और सागरोपम की प्ररूपणा सूक्ष्म का स्वरूप सरलता से समझ में आ जावे इसलिए की गई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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