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________________ दो ताड़ वृक्षों एवं अर्गला सदृश प्रलम्ब भुजाओं से युक्त, चर्मेष्टक, मुद्गर आदि के व्यायाम, आघात आदि से परिपुष्ट गात्र युक्त, कूदना, तैरना इत्यादि विषयक व्यायामों में अभ्यास के कारण समर्थ, मानसिक एवं आत्मिक साहस से परिपूर्ण, छेक, दक्ष, प्राप्तार्थ, कुशल, मेघावी, निपुण, स्वशिल्प में प्रवीण एक दर्जी का पुत्र (एक) बड़ी सूती साड़ी या रेशमी साड़ी को लेकर शीघ्र ही एक हाथ परिमित अवसृत करे फाड़े तो - (प्रश्नकर्त्ता प्ररूपक से पूछता है - ) जितने काल में उस दर्जी के पुत्र के उस सूती या रेशमी साड़ी को शीघ्रता पूर्वक एक हाथ परिमित फाड़ा, क्या वह काल एक समय परिमित है ? नहीं, ऐसा नहीं होता । क्यों ? • संख्यात तन्तुओं के समुदय समिति समागम से सूती और रेशम की साड़ी निष्पन्न होती है। उस साड़ी के जब तक ऊपर के तन्तु अच्छिन्न होते हैं तब तक नीचे के तन्तु छिन्न नहीं होते । ऊपर के तंतु अन्य काल में छिन्न होते हैं तथा नीचे के तन्तु अन्य काल में छिन्न होते हैं। इसलिए वह काल समय नहीं है। ऐसा समाधान देने वाले से प्रश्नकर्त्ता ने यों कहा - समयनिरूपण - Jain Education International - जिस समय दर्जी के पुत्र ने सूती या रेशमी साड़ी के ऊपर के तन्तु को छिन्न किया, क्या वह काल समय परिमित है ? ऐसा नहीं है। क्यों नहीं है? ३१५ क्योंकि संख्यात रेशों के समुदय-सम्मिलन - समागम के परिणाम स्वरूप एक तंतु निष्पन्न होता है। जब तक ऊपर के रेशे अच्छिन्न रहते हैं, नीचे के रेशे छिन्न नहीं होते। ऊपर के रेशे का छिन्न होने का अन्य काल है तथा नीचे के रेशे के छिन्न होने का दूसरा काल है। अतः ऊपर के रेशे के छिन्न होने का काल समय नहीं कहा जा सकता। ऐसा कहते हुए समाधायक से प्राश्निक (प्रश्नकर्त्ता) ने यों कहा जिस समय उस दर्जी के पुत्र द्वारा उस तंतु का नीचे का रेशा छिन्न होता है, क्या वह समय है? ऐसा नहीं होता । क्यों? For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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