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अनुयोगद्वार सूत्र
अण्णम्मि काले हिडिल्ले पम्हे छिजइ, तम्हा से समए ण भवइ। एवं वयंतं पण्णवयं चोयए एवं वयासी-जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तस्स तंतुस्स उवरिल्ले पम्हे छिण्णे से समए भवइ?
ण भवइ। कम्हा?
जम्हा अणंताणं संघायाणं समुदयसमिइसमागमेणं एगे पम्हे णिप्फज्जइ, उवरिल्ले संघाए अविसंघाइए हेट्ठिल्ले संघाए णं विसंघाइज्जड़, अण्णम्मि काले उवरिल्ले संघाए विसंघाइजइ, अण्णम्मि काले हेट्ठिल्ले संघाए विसंघाइजइ, तम्हा से समए ण भवइ। एत्तो वि य णं सुहुमतराए समए पण्णत्ते समणाउसो!
शब्दार्थ - तुण्णागदारए - दर्जी का पुत्र, सिया - हो, जुगवं - युगवान - सुषुम-दुषम आदि तृतीय-चतुर्थ आरक में उत्पन्न अप्पायंके - रोग रहित, थिरग्गहत्थे - मजबूत हाथ से युक्त, दढपाणिपाय-पासपिटुंत-रोरुपरिणए - सुदृढ़ हाथ - पैर-पृष्ठान्तर - उरूस्थल युक्त, तलेजमल-जुयल-परिघणिभबाहू - समान स्थित दो तालवृक्षों के समान अथवा किवाड़ों की अर्गला जैसी भुजाएं धारण करने वाला, चम्मेठ्ठग-दुहण-मुट्ठिय-समाहय-णिचियगत्तकाए - चर्मावरण युक्त प्रहरण तथा मुष्ठिबंध से व्यायाम आदि के आघात से मजबूत सुपुष्ट अंगों वाला, लंघणपवण-जइण-वायाम-समत्थे - लंघन - प्लवन इत्यादि व्यायाम में समर्थ, उरस्सबलसमण्णागएमानसिक बल एवं आत्मिक साहस से परिपूर्ण, छेए - छेक - उपायज्ञ, दक्खे - दक्ष-समर्थ, पत्तठेप्रतार्थ - कार्य साधक, मेहावी - मेधावी, णिउणे - निपुण, णिउणसिप्पोवगए - अपने शिल्प में चतुर, महई - बड़ी, पडसाडियं - सूती साड़ी, पट्टसाडियं - रेशमी साड़ी, गहाय - लेकर, सयराहं - एक साथ, हत्थमेत्तं - एक हाथ परिमित, ओसारेज्जा - अवसृत करें - फाड़े, चोयए - प्रेरक, पण्णवयं - प्रतिपादक, तीसे - उस, सयराहं - शीघ्रतर, तंतूणं - धागों के, णिप्फजइ - निष्पन्न होता है, उवरिल्लम्मि - ऊपर के, अण्णम्मि - अन्य, उवरिल्ले - ऊपर के, छिज्जइ - क्षीण होते हैं, हिट्ठिल्ले - नीचे के, पम्हे - पक्ष्म-रेशे, अच्छिण्णे - अछिन्न, संघायाणं - संघातों के, अविसंघाइए - अपृथक्, सुहुमतराए - सूक्ष्मतर।
भावार्थ - समय का क्या स्वरूप है?
समय के स्वरूप को प्ररूपित करूँगा - जैसे एक तरूण बलवान्, युगोत्पन्न, युवक, रोगरहित, स्थिर अग्रहस्त युक्त, सुदृढ़ हाथ-पैर-उरु आदि अवयव युक्त, समान रूप में स्थित
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