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________________ ३०२ अनुयोगद्वार सूत्र _ विवेचन - उपयुक्त सूत्र में समुच्चय (औधिक) चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट छह गव्यूति (कोस) की बताई गई है। सम्मूर्छिम चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट गव्यूति पृथक्त्व की बताई है। यहाँ पर 'गव्यूति पृथक्त्व' शब्द से 'जघन्य दो गव्यूति उत्कृष्ट छह गव्यूति से अधिक' नहीं समझना चाहिये। क्योंकि औधिक बोल से अधिक अवगाहना उनके भेदों में किसी की भी नहीं होती है। इसी प्रकार पर्याप्त सम्मूर्छिम चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की शरीरावगाहना के विषय में भी जानना चाहिये। सम्मूर्छिम उरपरिसर्प स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट योजन पृथक्त्व बताई है। यहाँ पर 'योजन पृथक्त्व' से 'दो योजन से लेकर बारह योजन एवं इससे भी अधिक' यथायोग्य अवगाहना समझना चाहिये। क्योंकि प्रज्ञापना सूत्र के द्वितीय पद में सम्मूर्छिम उरपरिसर्प तिर्यंच पंचेन्द्रिय के भेद रूप में 'आसालिक' की अवगाहना उत्कृष्ट बारह योजन की बताई गई है। अतः यहाँ पर योजन पृथक्त्व शब्द से बारह योजन का ग्रहण भी समझ लेना चाहिये। खहयरपंचिंदियपुच्छा। - गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं। सम्मुच्छिमखहाराणं जहा भुयगपरिसप्पसम्मुच्छिमाणं तिसु वि गमेसु तहा भाणियव्वं। गब्भवक्कंतियखहयरपुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभाग, उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं । अपजत्तगगब्भवक्कंतियखहयरपुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेजइभागं। पजत्तगगब्भवक्कंतियखहयरपुच्छा। गोयम! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं । शब्दार्थ - खहयर - खेचर - गगनचारी। भावार्थ - खेचर-पंचेन्द्रिय जीवों की अवगाहना के विषय में पूछा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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