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________________ पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की अवगाहना ३०१ अपर्याप्तक-गर्भव्युत्क्रांतिक-उरःपरिसर्प-थलचर जीवों की अवगाहना के संबंध में प्रश्न पूछा। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग पर्यन्त तथा उत्कृष्टतः भी अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित होती है। पर्याप्तक-गर्भव्युत्क्रांतिक-उरः परिसर्प-थलचर जीवों की अवगाहना के विषय में प्रश्न पूछा। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः एक हजार योजन परिमित होती है। भुजपरिसर्प-थलचर-पंचेन्द्रिय जीवों की अवगाहना के संदर्भ में प्रश्न किया गया। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित तथा उत्कृष्टतः गव्यूतिपृथक्त्व होती है। सम्मूर्छिम - भुजपरिसर्प-थलचर-पंचेन्द्रिय जीवों की अवगाहना के संदर्भ में प्रश्न है। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित तथा उत्कृष्टतः धनुष पृथक्त्व होती है। अपर्याप्तक-सम्मूर्छिम-भुजपरिसर्प-थलचर जीवों की अवगाहना के संदर्भ में जिज्ञासा है। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित तथा उत्कृष्टतः भी अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित है। पर्याप्तक-सम्मूर्छिम-भुजपरिसॉ की शरीरावगाहना के संदर्भ में प्रश्न किया गया। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित तथा उत्कृष्टतः धनुष पृथक्त्व होती है। गर्भव्युत्क्रांतिक-भुजपरिसर्प-थलचर जीवों के संदर्भ में प्रश्न है। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित तथा उत्कृष्टतः गव्यूतिपृथक्त्व होती है। अपर्याप्तक-भुजपरिसॉं की शरीरावगाहना के विषय में पूछा गया। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित तथा उत्कृष्टतः भी अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमित होती है। पर्याप्तक-भुजपरिसों की शरीरावगाहना के विषय में पूछा गया। आयुष्मन् गौतम! इनकी अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः गव्यूतिपृथक्त्व होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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