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________________ अनुयोगद्वार सू उनमें उत्तर वैक्रिय देहावगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग तुल्य तथा उत्कृष्टतः एक हजार धनुष परिमित है । भवनपति देवों की शरीरावगाहना असुरकुमाराणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोमा ! दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - भवधारणिज्जा य १ उत्तर वेडव्विया य २ । तत्थ णं जा सा भवधारणिजा सा - जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्तरयणीओ । २६२ तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा- जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं एवं असुरकुमारगमेणं जाव थणिय-कुमाराणं भाणियव्वं । भावार्थ - हे भगवन्! असुरकुमार देवों की शरीरावगाहना कियत् विस्तीर्ण' बतलाई गई है ? हे आयुष्मन् गौतम! वह भवधारणीय एवं उत्तर वैक्रिय के रूप में दो प्रकार की बतलाई गई है। इनमें से भवधारणीय जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः सात रनि जितनी होती है। उनमें जो उत्तर वैक्रिय देहावगाहना है, वह कम से कम अंगुल के संख्यातवें भाग परिमित तथा अधिक से अधिक एक लाख योजन परिमित है । इसी प्रकार से - असुरकुमार देवों के समान ही (नागकुमारों) यातव् स्तनितकुमारों तक समस्त भवनवासी देवों की अवगाहना कथनीय है । पांच स्थावरों की शरीरावगाहना पुढविकाइयाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । एवं सुहुमाणं ओहियाणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणं बादराणं ओहियाणं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणं च भाणियव्वं । एवं जाव बायरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं भाणियव्वं । शब्दार्थ - ओहियाणं - सामान्य रूप से, अपज्जत्तगाणं- अपर्याप्त, पज्जत्तगाणं - पर्याप्त । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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