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________________ नारकों की अवगाहना २६१ तमाए भवधारणिजा - जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं अह इजाइंधणुसयाई। उत्तरवेउव्विया - जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभागं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाई। भावार्थ - इसी प्रकार सभी नारकभूमियों के संदर्भ में प्रश्न कथनीय है - पंकप्रभा पृथ्वी में भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग के तुल्य तथा उत्कृष्टतः बासठ धनुष एवं दो रत्लि प्रमाण होती है। उत्तर वैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः एक सौ पच्चीस धनुष परिमित है। धूमप्रभा पृथ्वी के नारकों के भवधारणीय शरीर की कम से कम अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः एक सौ पच्चीस धनुष परिमित है, उत्तर वैक्रिय शरीर की जघन्यतः अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः अढाई सौ धनुष प्रमाण होती है। तमःप्रभा पृथ्वी के नारकों के भवधारणीय शरीर की अवगाहना कम से कम अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः अढाई सौ धनुष परिमित होती है। उत्तर वैक्रिय शरीर की जघन्यतः शरीरावगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टः पांच सौ धनुष के तुल्य है। ... तमतमाए पुढवीए णेरइयाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - भवधारणिजा य १ उत्तरवेउव्विया य २। तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा - जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाई। ___ तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा - जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजड़भागं, . उक्कोसेणं धणुसहस्साइं। भावार्थ - हे भगवन्! तमस्तमा पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कियत् विस्तार युक्त बतलाई गई है? __ हे आयुष्मन् गौतम! वह दो प्रकार की प्रज्ञप्त हुई है - १. भवधारणीय एवं २. उत्तर वैक्रिय। उनमें जो भवधारणीय शरीरावगाहना है, वह जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा उत्कृष्टतः पांच सौ धनुष प्रमाण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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