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अनुयोगद्वार सूत्र
भावार्थ - इस अंगुलप्रमाण के अनुसार छह अंगुलों का एक पाद, बारह अंगुलों की एक वितस्ति (बेंत), चौबीस अंगुलों की एक रत्नी (हाथ), अड़तालीस अंगुलों की एक कुक्षि, छियानवें अंगुलों का एक दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष या मूसल होता है। इस धनुष प्रमाण से दो हजार धनुष प्रमाणों की एक गव्यूति (कोस), चार गव्यूति का एक योजन होता है। उत्सेधांगुल का प्रयोजन
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एए उस्सेहंगुलेणं किं पओयणं?
एएणं उस्सेहंगुणं रइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवाणं सरीरोगाहणा मविज्जइ । शब्दार्थ - णेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवाणं - नैरयिक, तिर्यंचयोनिक ( जीवों), मनुष्यों और देवों की, सरीरोगाहणाओ - शारीरिक अवगाहना, मविज्जइ मापी जाती है।
भावार्थ - इस उत्सेधांगुल का क्या प्रयोजन है?
इस उत्सेधांगुल से नैरयिक, तिर्यंचयोनिक जीवों, मनुष्यों और देवताओं की शरीरावगाहना का माप होता है।
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नारकों की अवगाहना
रइयाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?
गोमा ! दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - भवधारणिज्जा य १ उत्तरवेउव्विया य २ । तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा णं- जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाइं । तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा- जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुसहस्सं ।
शब्दार्थ - केमहालिया - कितनी बड़ी, भवधारणिज्जा - भवधारणीय, उत्तरवेऽव्वियाउत्तर वैक्रिय ।
भावार्थ - हे भगवन्! नारकों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी बतलाई गई है ?
हे आयुष्मन् गौतम! नारक जीवों के शरीर की अवगाहना दो प्रकार की कही गई है - १. भवधारणीय तथा २. उत्तर वैक्रिय ।
इनमें से भवधारणीय शरीर की अवगाहना कम से कम अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी तथा अधिक से अधिक पांच सौ धनुषों जितनी होती है ।
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