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________________ २७८ अनुयोगद्वार सूत्र ____एएणं आयंगुलेणं जे णं जया मणुस्सा हवंति तेसि णं तया णं आयंगुलेणं अगड, तलाग, दह, णई, वावि, पुक्खरिणी, दीहिय, गुंजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलतियाओ आरामुज्जाण, काणण, वण, वणसंड, वणराईओ, देउल, सभा, पवा, थूभ, खाइय, परिहाओ पागार, अट्टालय, चरिय, दार, गोपुर, पासाय, घर, सरण, लयण, आवण, सिंघाडग, तिग, चउक्क, चच्चर, चउम्मुह, महापह, पह, सगड, रह, जाण, जुग्ग, गिल्लि, थिल्लि, सिविय, संदमाणियाओ, लोही, लोह, कडाह, कडिल्लय, भंडमत्तोवगरणमाईणि अज्जकालियाइं च जोयणाई मविनंति। शब्दार्थ - अगड - कूप, तलाग - तटाक-तालाब, दह - खड्डे, णई - नदी, वावि - वापी-बावड़ी, पुक्खरिणी - पुष्करिणी-कमलयुक्त सरोवर, दीहिय - दीर्घिका - लंबीचौड़ी वापी, गुंजालियाओ - गुंजालिका - गुंजा या चिरमी की तरह वक्राकृति युक्त वापी, सरा - सरोवर, सरपंतियाओ - सरोवरों की कतारें, सरसरपंतियाओ - नालियों द्वारा संबद्ध जलाशय की पंक्तियाँ, बिलपंतियाओ - छोटी-छोटी कुइयों की पंक्तियाँ, आराम - आमोद-प्रमोद के बगीचे, उज्जाण - उद्यान - विविध प्रकार के पुष्प-फलाच्छादित बाग, काणण - नगर का समीपवर्ती विविधवृक्षयुक्त वन प्रदेश, वण - अधिकांशतः एक जातीय पादपयुक्त जंगल, वणसंड - अनेक जातियुक्त वृक्षोपेत वन, वणराइओ - वनराजियाँ - हरे भरे विविध वृक्षों से युक्त वनों की पंक्तियाँ, देउल - देवस्थान, सभा - सभा भवन, पवा - प्रपा-जल प्रतिष्ठान, थूभ - स्तूप, खाइय - खाई, परिहाओ - परिखा - अधस्तन भाग में संकीर्ण एवं उपरितन भाग में विस्तीर्ण खाई, पागार - परकोटा या प्रकोष्ठ, अद्यालय - प्रकोष्ठ पर निर्मित छोटा प्रकोष्ठ, चरिय - चरिका - खाई और परकोटे के बीच निर्मित आठ हाथ का मार्ग, दार - द्वार, गोपुर - नगर, प्रासाद या विशाल मन्दिर में प्रवेश का मुख्य द्वार, पासाय - प्रासाद, सरण - शरण - आश्रयस्थल, लयण - पर्वत की तलहटी में निर्मित आवास स्थान, आवणआपण - क्रय-विक्रय का स्थान-बाजार, सिंघाडग - श्रृंगाटक - सिंघाड़े की तरह तिकोने मार्ग, तिग - जहाँ तीन रास्ते मिलते हैं (त्रिक), चउक्क - चतुष्क - चौराहा, चच्चर - चत्वर - चौगान-चौक, चउम्मुह - चतुर्मुख - चार द्वारों से युक्त देवस्थान, महापह - महापथ-विशाल राजमार्ग, सगड- शकट-गाड़े, रह - रथ, जाण - यान - सवारी हेतु प्रयुक्त यान, जुग्गे - युग्य - डोली, गिल्लि- हाथी पर बैठने का हौदा, थिल्ली - बहली (जिसे बैल खींचते हों), Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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