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आत्मगुल का उद्देश्य
विवेचन उपर्युक्त सूत्र में जो “१. मान २. उन्मान ३. प्रमाण युक्तता" बताई है उसका आशय इस प्रकार से समझना चाहिये - मानयुक्त होने से यह ज्ञात होता है कि • इसे माता का अंश (आहार) बराबर मिलने से माँस आदि अवयवों का उचित विकास हुआ है इससे शरीर का आयतन (चौड़ाई) पूर्ण रूप से विकसित हुआ है । उन्मान युक्त होने से यह ज्ञात होता है कि इसे पिता का अंश बराबर मिलने से अस्थियों का निचय समुचित हुआ है। प्रमाण युक्त होने से यह ज्ञात होता है कि इसके शरीर के वजन एवं घेराव आदि का उचित विकास हुआ है। १. मानयुक्तता में जल से भरे हुये किसी हौद (कुंड) में मनुष्य के प्रवेश करने पर उसमें से एक द्रोण प्रमाण पानी बाहर निकल जाता हो अथवा द्रोण जितना कुंड खाली हो और मनुष्य के प्रवेश करने पर पूरा भर जाता हो, तो वह मान युक्त पुरुष गिना जाता है । द्रोण का माप सारस्वत व्याकरण में इस प्रकार बताया है 'आठ मुट्ठियों का एक किञ्चित्, आठ किञ्चितों का एक पुष्कल, चार पुष्कलों का एक आढ़क, चार आढ़कों का एक द्रोण होता है।' २. उन्मान युक्तता में तराजू से तोलने पर जो पुरुष अर्धभार जितना वजन वाला हो । चार तोले का एक पल, एक सौ पाँच पल की एक तुला, दस तुलाओं का अर्धभार होने से वर्तमान के हिसाब से लगभग ४८ किलो वजन होता है। भरत चक्रवर्ती आदि के समय तोले का वजन बड़ा हो सकता है।
३. प्रमाणयुक्तता में - शरीर की ऊँचाई १०८ अंगुल (हाथ ऊँचा करके मापने की अपेक्षा) की होती है।
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एएणं अंगुलप्रमाणेणं-छ अंगुलाई - पाओ, दो पाया. विहत्थीओ - रयणी, दो रयणीओ - कुच्छी, दो कुच्छीओ - णालिया अक्खे मुसले, दो धणुसहस्साइं - गाउयं, चत्तारि गाउयाई
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भावार्थ इस अंगुल प्रमाण के अनुसार छह अंगुल का एक पाद, दो पाद की एक वितस्ति, दो वितस्तियों की एक रत्नी, दो रत्नियों की एक कुक्षि, दो कुक्षियों का एक दण्ड, धनुष, युग (जुआड़ा), नालिका, अक्ष, मूसल, दो हजार धनुष की एक गव्यूति (कोस ) तथा चार गव्यूति का एक योज़न होता है।
आत्मांगुल का उद्देश्य
एएणं आयंगुलपमाणेणं किं पओयणं?
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विहत्थी, दो दंडं धणू जुगे - जोयणं ।
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