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अनुयोगद्वार सूत्र
किसी-किसी प्रति में 'मुणिमाया' के स्थान पर 'गणिमाया' पाठ मिलता है। जिसका अर्थ - 'गणि (आचार्य) की माता' होता है।
३. धातुज भाव प्रमाण निष्पन्न नाम. ... से किं तं धाउए?
धाउए - भू. सत्ताया परस्मैभाषा, एधर वृद्धौ, स्पर्द्ध संघर्षे, गाधृ० प्रतिष्ठालिप्सयोर्ग्रन्थे च, बाध+लोडने। सेत्तं धाउए।
शब्दार्थ - धाउए - धातु, सत्तायां - अस्तित्व के अर्थ में, परस्मैभाषा - परस्मैपदी, वृद्धौ - बढ़ने के अर्थ में, संघर्षे - स्पर्धा या संघर्ष के अर्थ में, प्रतिष्ठालित्सयोर्ग्रन्थे - प्रतिष्ठा, आकांक्षा (उत्कंठा) और संचयन के अर्थ में, लोडने - विलोडन (मथने) में। .
भावार्थ - धातुज नाम का क्या स्वरूप है?
सत्तार्थक, परस्पैपदी भू धातु, वृद्धि के अर्थ में प्रयुक्त एध् धातु, स्पर्धा और संघर्ष के अर्थ में प्रयुक्त स्पर्द्ध धातु, प्रतिष्ठा, लिप्सा और ग्रंथन या संचयन का अर्थ देने वाली गाधृ धातु, विलोडन के अर्थ में प्रयुक्त बाधृ धातु - यह धातुज नाम का स्वरूप है।
४. निरुक्ति जनित भाव प्रमाण निष्पन्न नाम से किं तं णिरुत्तिए?
णिरुत्तिए - मह्यां* शेते-महिषः, भ्रमति चरौतिच-भ्रमरः, मुहुर्मुहुर्लसतीतिमुसलं, कपेरिव लम्बते त्थेति च करोति-कपित्थं, चिदिति करोति खल्लं च भवति-चिक्खलं,ऊर्ध्वकर्णः*-उलूकः, मेखस्य माला-मेखला।सेत्तं णिरुत्तिए। सेत्तं भावप्पमाणे। सेत्तं पमाणणामे। सेत्तं दसणामे। सेत्तं णामे। .
॥णामेत्ति पयं समत्तं॥
.भू सत्ताए ‘परस्मै०' अद्धमागहीए णत्थि, * एह वुड्डीए, ० फद्ध संघरिसे + एए 'सक्कए' अद्धमागहीए एएसि ठाणे अण्णा पउज्जति।
* महीए सुवइ-महिसो, • भमइ य रवइ य - भमरो, * मुहं मुहं लसइ ति मुसलं, * 'सक्कए' अद्धमागहीए जहा हेट्ठा, * उडकण्णो - उलओ. मेखस्स माला-मेखला।
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