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अनुयोगद्वार सूत्र
६. संयूथ नाम
से किं तं संजूहणामे ?
संजूहणामे - तरंगवइक्कारे, मलयवइक्कारे, अत्ताणुसट्ठिकारे, बिंदुकारे । सेत्तं. संजूणामे ।
शब्दार्थ - संजूहणामे - संयूथनाम ।
भावार्थ - तरंगवतीकार, मलयवतीकार, आत्मानुषष्टिकार तथा बिन्दुकार, ये संयूथनाम के उदाहरण हैं। यह संयूथनाम का स्वरूप है।
विवेचन - संयूथ शब्द का अर्थ संग्रथन या ग्रन्थ रचना है। जिन्होंने जिन ग्रन्थों की रचना की, उन ग्रन्थों के नाम के आगे तद्धित प्रत्यय लगाकर रचना करने वालें के नाम स्थापित या निर्धारित किये जाते हैं, वे संयूथनाम कहलाते हैं। यहाँ तरंगवती आदि ग्रन्थों के नाम के आगे तद्धित प्रत्यय लगाकर तरंगवतीकार आदि जो नाम ग्रन्थ रचयिताओं के नाम निष्पन्न हुए हैं, वे यूथ नाम हैं।
तरंगवती कथा के रचयिता श्री पादलिप्त सूरि है। अन्य ग्रन्थों के रचयिता इतिहास से जानना चाहिये ।
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७. ऐश्वर्य नाम
से किं तं ईसरियणामे ?
ईसरियणामे - राईसरे, तलवरे, माडंबिए, कोडुंबिए, इब्भे, सेट्ठी, सत्थवाहे, सेवई । सेतं ईसरियणामे ।
शब्दार्थ - ईसरियणामे - ऐश्वर्यनाम, राइसरे - राजेश्वर, तलवरे तलवर, माडंबिय - माडंबिक, कोडुबिए - कौटुम्बिक, इब्भे- धन सम्पन्न, सेट्ठी श्रेष्ठी, सत्थवाहे - सार्थवाह, सेणावई - सेनापति ।
भावार्थ - ऐश्वर्यनाम का क्या स्वरूप है ?
राजेश्वर, तलवर, मांडबिक, कौटुंबिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सार्थवाह तथा सेनापति- ये ऐश्वर्य नाम का स्वरूप है।
विवेचन - ऐश्वर्य के आधार पर जिनका नामकरण होता है, उनका यहाँ वर्णन है।
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