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________________ अनुयोगद्वार तौनिक, तंतुवाय, पट्टकार, औद्वत्तिक, बारूंटिक, मौञ्जकार, काष्ठकार, छत्रकार, वाह्यकार, पौस्तकार, चित्रकार, दंतकार, लेप्यकार, शैलकार तथा कोट्टिमकार - ये शिल्पनाम - शिल्प के आधार पर निर्धारित नाम हैं। विवेचन - कर्मनाम की तरह शिल्पनाम में भी तद्धित प्रत्ययों का प्रयोग हुआ है, जिनसे में आए शब्द निष्पन्न हुए हैं। इस सूत्र ३. श्लोक नाम २५८ से किं तं सिलोयणामे ? सिलोयणामे - समणे, माहणे, सव्वातिही । सेत्तं सिलोयणामे । शब्दार्थ - सिलोयणामे - श्लोकनाम, समणे श्रमण, माहणे - ब्राह्मण, सव्वातिहीसबके अतिथि। भावार्थ - श्लोक नाम का क्या स्वरूप है ? सबके अतिथि, श्रमण और ब्राह्मण श्लोक नाम के अन्तर्गत आते हैं। विवेचन - 'श्रमं नयतीति श्रमण: ' जो संयम, तप एवं व्रतरूप श्रम करता है, वह श्रमण है। 'ब्रह्मं नयति आराधते इति ब्राह्मणः जो ब्रह्म की आराधना करता है, वह ब्राह्मण होता है। यह श्रमण तथा ब्राह्मण शब्द की निरुक्ति है जो उनकी उत्तम कार्य जनित प्रशस्तता या यशस्विता की सूचक है। श्लोक शब्द का ऐसा ही अर्थ है । वह यश या कीर्ति का वाचक है। इसी कारण श्रमण और ब्राह्मण को सबका अतिथि कहा गया है। 'नास्ति तिथिर्यस्य स अतिथि' - जिसके भिक्षादि हेतु आगमन की कोई तिथि नहीं होती, उसे अतिथि है। त्यागी, श्रमण आदि इसी श्रेणी में आते हैं। यहाँ प्रशस्त अर्थ में मत्वर्थीय 'अच्' प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है, जिससे ये शब्द बने हैं। ४. संयोग नाम - Jain Education International - - किं तं संजोगणामे ? संजोगणामे - रण्णो ससुरए, रण्णो जामाउए, रण्णो साले, रण्णो भाउए, रण भगिणीवई । सेत्तं संजोगणामे । 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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