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अनुयोगद्वार सूत्र
शब्दार्थ - अणुगाम - गांव के समीप, अणुणइयं - नदी के निकट, अणुफरिहं - स्पर्श के अनुरूप, अणुचरियं - चरित्र के अनुकूल।
भावार्थ - अव्ययीभाव का क्या स्वरूप है?
अनुग्राम, अनुनदिय, अनुस्पर्श तथा अनुचरित - यह अव्ययीभाव के उदाहरण हैं। अव्ययीभाव का ऐसा स्वरूप है।
विवेचन - अव्ययीभाव समास में पूर्वपद की प्रधानता होती है। उसमें पहला शब्द अव्यय और दूसरा शब्द संज्ञा होता है। किन्तु दोनों के मिलकर समास हो जाने पर वह समस्तसमासयुक्त पद अव्यय हो जाता है। उसके लिंग, वचन एवं विभक्ति भेद से रूप नहीं चलते। कहा गया है -
सदृशं त्रिषुलिङ्गेषु, सर्वासु च विभक्तिसु। वचनेसु च सर्वेस, यन्नव्येति तद्व्ययम्॥
जो पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग - तीनों में एक समान रहता है तथा सभी विभक्तियों • में एक जैसा रहता है एवं एकवचन, द्विवचन, बहुवचन - तीनों वचनों में सादृश्य लिए रहता है,
उसे अव्यय कहते हैं। ___अव्यय वाक्यों में प्रयोग सर्वत्र नपुंसकलिंग एकवचन में ही होता है, वह कभी परिवर्तित
नहीं होता।
प्रस्तुत सूत्र में जो उदाहरण दिये गए हैं, वे इसी आशय के द्योतक हैं।
७. एकशेष समास से किं तं एगसेसे?
एगसेसे - जहा एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा, जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो, जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावणा, जहा बहवे करिसावणा तहा एगो करिसावणो, जहा एगो साली तहा बहवे साली, जहा बहवे साली तहा एगो साली। सेत्तं एगसेसे समासे। सेत्तं सामासिए।
शब्दार्थ - एगसेसे - एकशेष, जहा - जैसा, तहा - तथा, पुरिसो - पुरुष, करिसावणोकार्षापण-स्वर्ण मुद्रा, साली - एक प्रकार का चावल।
भावार्थ - एकशेष समास का क्या स्वरूप है?
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