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दस नाम - द्वन्द्व समास
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विवेचन - भाषागत वाक्यों के पदों के संक्षेपजनित सौष्ठव हेतु समास की परिकल्पना की है। 'समस्यते संक्षिप्ती क्रियतेति समासः, अनेकपदानां एकपदीभवनं समासः' - इत्यादि परिभाषाएं समास के स्वरूप का आख्यान करती हैं। 'विभक्त्यन्तं पद्म' के अनुसार कारकद्योतक, विभक्ति सहित शब्द पद कहा जाता है। समास में मध्यवर्ती विभक्तियों का लोप हो जाता है तथा अन्त में एक ही विभक्ति रहती है। समास में आए भिन्न-भिन्न पदों को पृथक् करना विग्रह कहा जाता है। समास में प्रयुक्त एकाधिक पदों में कहीं पूर्वपदों का या कहीं उत्तरपदों का प्राधान्य होता है और भी अनेक विधाएँ समासात्मक शब्द संयोजन में प्रयुक्त होती हैं, जो उनके भेद में निरूपित होंगी।
१. द्वन्द्व समास से किं तं दंदे?
दंदे - दंताश्चओष्ठौ * च-दन्तोष्ठम, स्तनौ * च उदरं च-स्तनोदरम्, वस्त्रं * च पात्रं च-वस्त्रपात्रम्, अश्वाश्च* महिषाश्च=अश्वमहिषम्, अहिश्च* णकुलश्च%अहिणकुलम्। सेत्तं दंदे समासे।
शब्दार्थ - महिष - भैंसा, अहि - सांप।
भावार्थ - द्वन्द्व समास का क्या स्वरूप है? __ द्वन्द्व समास इस प्रकार होता है - दांत तथा ओष्ठ - दन्तोष्ठ, स्तन और उदर - स्तनोदर, वस्त्र तथा पात्र - वस्त्र-पात्र, अश्व एवं महिष - अश्व-महिष, अहि और नकुल - अहि-नकुल।
यह द्वन्द्व समास का निरूपण है।
विवेचन - द्वन्द्व समास में एकाधिक शब्द समस्त पद के रूप में प्रयुक्त होते हैं। दोनों ही पद प्रधान होते हैं। वहाँ उनको जोड़ने वाले संयोजक पद 'च'' आदि का लोप हो जाता है। अन्त में विभक्ति रहती है। मध्यवर्ती विभक्ति का भी लोप हो जाता है। सूत्र में दिए गए उदाहरणों से यह स्पष्ट है।
अन्तिम विभक्ति का दो प्रकार से प्रयोग होता है - संस्कृत में यदि दो पदों का समास हो
• १ दंता य ओडा य-दंतोष्डं, २ थणा य उयरं च-थणोयरं, ३ वत्थं च पायं चम्वत्थपत्तं, ४ आसा य महिसा य आसमहिसं, ५ अही य णउलो य=अहिणउलं।
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