________________
२३२
अनुयोगद्वार सूत्र
भावप्रकाश में आगे बताया गया है कि चार आढक का एक द्रोण होता है। उसको कलश, नल्वण, अर्मण, उन्मान, घट तथा राशि भी कहा जाता है। दो द्रोण का एक शूर्प होता है, उसको कुंभ भी कहा जाता है तथा ६४ (चौसट्ट) शराव का होने से चतुःषष्टि शरावक भी कहा जाता है* ___ अवयवनिष्पन्न और गौणनिष्पन्न नाम में अन्तर - अवयवनिष्पन्ननाम में श्रृंग आदि शरीरावयव या अंग-प्रत्यंग विशेष नाम के आधार हैं, जबकि गौणनिष्पन्ननाम में गुणों की प्रधानता होती है। इसलिये अवयवनाम और गौणनाम पृथक्-पृथक् माने गये हैं।
६. संयोगनिष्पन्न नाम से किं तं संजोएणं?
संजोगे चउब्विहे पण्णत्ते। तंजहा - दव्वसंजोगे १ खेत्तसंजोगे २ कालसंजोगे ३ भावसंजोगे ।
भावार्थ - संयोग के कितने प्रकार हैं? संयोग चार प्रकार का बतलाया गया है, जो इस प्रकार हैं - १. द्रव्य संयोग २. क्षेत्र संयोग ३. काल संयोग ४. भाव संयोग। '
१. द्रव्य संयोग निष्पन्न नाम से किं तं दव्वसंजोगे?
पलाभ्यां प्रसृतिर्जेया प्रसृतञ्च निगद्यते। प्रसृतिभ्यामञ्जलिः स्यात्कुडवोऽर्द्ध शरावकः॥ अष्टमानञ्च स ज्ञेयः कुडवाभ्याञ्च मानिका। शरावोऽष्टपलं तद्वज्ज्ञेयमत्र विचक्षणैः॥
__ (भावप्रकाश, पूर्व खण्ड, द्वितीय भाग, मानपरिभाषा प्रकरण - २-४।) * चतुर्भिराढकोणः कलशो नल्वणोऽर्मण। उन्मानञ्च घटो राशिट्टैणपर्यायसंज्ञितः॥ शूर्पाभ्याञ्च भवेद् द्रोणी वाहो गोणी च सा स्मृता। द्रोणाभ्यां शूर्पकुम्भौ च चतुःषष्टिश वारकः॥
( भावप्रकाश, पूर्व खण्ड, द्वितीय भाग, मानपरिभाषा प्रकरण - १५,१६)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org