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________________ २२६ अनुयोगद्वार सूत्र जमईयं - सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के पन्द्रहवें अध्ययन की प्रथम गाथा में आए ‘जमईयं' पद के आधार पर इस अध्ययन का यह नाम रखा गया है। ४. प्रतिपक्षपद निष्पन्न नाम से किं तं पडिवक्खपएणं? पडिवक्खपएणं - णवसु गामागर-णगर-खेडकब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणासम-संवाह- सण्णिवेसेसु सण्णिविस्समाणेसु - असिवा सिवा, अग्गी सीयलो, विसं महुरं, कल्लालघरेसु अंबिलं साउयं, जे लत्तए से अलत्तए, जे लाउएं से अलाउए, जे सुंभए से कुसुभए, आलवंते विवलीयभासए। सेत्तं पडिवक्खपएणं। शब्दार्थ - पडिवक्खपएणं - प्रतिपक्ष पद द्वारा, णवसु - नवीनों में, गाम - ग्राम, सण्णिविस्समाणेसु - बसाए जाने पर, असिवा - अशुभकारिणी, सिवा - श्रृगाली (गीदड़ी), अग्गी - अग्नि, सीयलो - शीतल, विसं - जहर, महुरं - मधुर, कल्लालघरेसु - मदिरा विक्रेता के घरों में, अंबिलं - अम्ल, साउयं - स्वादिष्ट, जे - जो, लत्तए - रक्त वर्ण युक्त, अलत्तए - अलक्तक - महावर रचना, लाउए - लाबू - पात्र, अलाउए - तूंबिका का पत्र, सुंभए - शुभ वर्ण युक्त, कुसुंभए - कुसुमल संज्ञक वस्त्र, आलवंते - आलापकारी - बोलने वाला, विवलीयभासए - विपरीत भाषी। भावार्थ - प्रतिपक्षपद निष्पन्न नाम का क्या अभिप्राय है? प्रतिपक्ष पद का आशय इस प्रकार है - ___ नए ग्राम, आकार, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रम, संवाह, सन्निवेश, बसाए जाने पर गीदड़ी जो अशुभ सूचक है, (उसके लिए) शिवा (कल्याणकारिणी) के नाम से अभिहित है। अग्नि जो उष्ण है, उसे शीतल, विष को मधुर, कलाल-मदिरा विक्रेता के घर में स्थित खट्टी खराब को स्वादिष्ट लक्त-रक्त या लाल रंग के महावर को अलक्तक (अरक्तक), पात्र को अपात्र (तूंबिका पात्र विशेष होते हुए भी अलावू-अपात्र), शुंभक - गहरे लाल वस्त्र को कुसुंभक (लाल वर्ण रहित) कहना, आलापक - बोलने वाले को विपरीत भाषक - उल्टा बोलने वाला कहा जाता है। यह प्रतिपक्षपद निष्पन्न नाम है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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