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अनुयोगद्वार सूत्र
अविसेसिए - मणुस्से । विसेसिए - सम्मुच्छिममणुस्से य, गब्भवक्कंतियमणुस्से
अविसेसिए-सम्मुच्छिममणुस्से । विसेसिए - पज्जत्तगसम्मुच्छिममणुस्से य, अपज्जत्तगसम्मुच्छिममणुस्से य ।
अविसेसिए - गब्भवक्कंतियमणुस्से । विसेसिए - कम्मभूमिओ य, अकम्मभूमिओ य, अंतदीवओ य, संखिज्जवासाउय, असंखिज्ज - वासाउय, पज्जत्तापज्जत्तओ ।
शब्दार्थ - मणुस्से मनुष्य ।
भावार्थ - मनुष्य अविशेषित हैं तो सम्मूर्च्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य विशेषित होंगे। यदि सम्मूर्च्छिम मनुष्य को अविशेषित मानते हैं तो पर्याप्तियुक्त सम्मूर्च्छिम मनुष्य एवं पर्याप्त रहित सम्मूर्च्छिम मनुष्य को विशेषित मानना होगा ।
यदि गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य को अविशेषित मानेंगे तो कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक, अन्तद्वीपिक, संख्यातवर्षायुष्ययुक्त, असंख्यातवर्षायुष्ययुक्त तथा पर्याप्तियुक्त एवं पर्याप्ति रहित मनुष्यों को विशेषित मानना होगा ।
विवेचन - उपर्युक्त सूत्र में सम्मूर्च्छिम मनुष्य के भी पर्याप्त और अपर्याप्त इस प्रकार भेद किये हैं। अन्यत्र आगमों में सम्मूर्च्छिम मनुष्य को नियमा अपर्याप्त होना ही बताया है । यहाँ पर जो पर्याप्त अपर्याप्त कहा है उसका आशय इस प्रकार से समझना चाहिये - सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में सभी की स्थिति एक सरीखी नहीं होती है उनमें उत्कृष्ट ( सबसे अधिक ) स्थिति वाले मनुष्यों को पर्याप्त एवं उससे कम स्थिति वाले मनुष्यों को अपर्याप्त समझना चाहिये। इस प्रकार अपेक्षा से अपर्याप्त एवं पर्याप्त भेद इनमें हो सकते हैं। वास्तव में तो सभी सम्मूर्च्छि मनुष्य चौथी श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति की अपूर्णता में ही काल करने वाले होने से वे अपर्याप्त ही कहलाते हैं।
अविसेसिए-देवे। विसेसिए - भवणवासी, वाणमंतरे, जोइसिए, वेमाणिए य ।
अविसेसिए - भवणवासी । विसेसिए - असुरकुमारे १ णागकुमारे २ सुवण्णकुमारे ३ विज्जुकुमारे ४ अग्गिकुमारे ५ दीवकुमारे ६ उदहिकुमारे ७ दिसाकुमारे ८ वाउकुमारे ६ थणियकुमारे १० ।
सव्वेसिं प अविसेसिय-विसेसियपज्जत्तग- अपज्जत्तगभेया भाणियव्वा ।
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