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________________ औपनिधिकी कालानुपूर्वी १३१ भावार्थ - संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी के कितने भेद हैं? संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी पाँच प्रकार की बतलाई गई है - १. अर्थपदप्ररूपणता २. भंगसमुत्कीर्तनता ३. भंगोपदर्शनता ४. समवतार और ५. अनुगम। . (११४) से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया-एयाइं पंच वि दाराइं जहा खेत्ताणुपुव्वीए संगहस्स कालाणुपुव्वीए वि तहा भाणियव्वाणि। णवरं ठिई-अभिलावो जाव सेत्तं अणुगमे। सेत्तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी। शब्दार्थ - अभिलावो - अभिलाप-पाठ। भावार्थ - संग्रहनयानुरूप अर्थ पद प्ररूपणता का क्या स्वरूप है? संग्रहनय सम्मत अर्थ पद प्ररूपणता आदि पांचों द्वारों का विवेचन इस कालानुपूर्वी के संदर्भ में क्षेत्रानुपूर्वी की भांति कथनीय है। विशेष बात यह है, 'प्रदेशावगाहयुक्त' के स्थान पर 'स्थिति' ऐसा पाठ ग्राह्य हैं यावत् यह अनुगम का स्वरूप है। इस प्रकार संग्रहनयानुरूप अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का विवेचन संपन्न होता है। (११५) ... औपनिधिकी कालानुपूर्वी से किं तं उवणिहिया कालाणुपुव्वी? उवणिहिया कालाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता। तंजहा - पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३। से किं तं पुव्वाणुपुव्वी? पुव्वाणुपुव्वी - समए १ आवलिया २ आणापाणू ३ थोवे ४ लवे ५ मुहुत्ते ६ अहोरत्ते ७ पक्खे ८ मासे ६ उऊ १० अयणे ११ संवच्छरे १२ जुगे १३ वाससए १४ वाससहस्से १५ वाससयसहस्से १६ पुव्वंगे १७ पुव्वे १८ तुडियंगे १६ तुडिए २०अडडंगे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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