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अनुयोगद्वार सूत्र
संग्रहनयानुसार आनुपूर्वी द्रव्य शेष द्रव्यों के संख्यात, असंख्यात, संख्यात (बहुवचन), असंख्यात (बहुवचन) भाग प्रमाण नहीं होते। (वे) नियमतः त्रिभाग प्रमाण होते हैं।
इसी प्रकार शेष दोनों (अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य) के संदर्भ में ज्ञातव्य है।
विवेचन - इस सूत्र में भाग निरूपण के अन्तर्गत आनुपूर्वी द्रव्यों को शेष द्रव्यों के त्रिभांग प्रमाण होने का उल्लेख किया गया है। उसका यह आशय है कि आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य द्रव्यों को मिलाने से जो एक राशि निष्पन्न होती है, उस राशि की दृष्टि से आनुपूर्वी द्रव्य एक तिहाई भाग परिमित हैं। पृथक्-पृथक् ये तीनों तीन राशियाँ होती हैं।
८. भाव-प्रतिपादन संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं कयरम्मि भावे होजा? . .. .
णियमा साइपारिणामिए भावे होजा। एवं दोण्णि वि। अप्पाबहुं णत्थि। सेत्तं अणुगमे। सेत्तं संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी। सेत्तं अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी।
शब्दार्थ - कयरम्मि - किसमें, अप्पाबहुं - अल्प-बहुत्व। भावार्थ - संग्रहनयानुसार आनुपूर्वी द्रव्य किस भाव में होते हैं? (आनुपूर्वी द्रव्य) नियमतः सादि पारिणामिक भाव में होते हैं।
इसी प्रकार शेष दोनों के संबंध में जानना चाहिए। इनमें (राशिगत द्रव्यों में) अल्प-बहुत्व नहीं होता।
यह अनुगम का विवेचन है। यह संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप है। इस प्रकार (संग्रहनयानुरूप) अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का विवेचन परिसंपन्न हुआ।
विवेचन - इस सूत्र में आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी, अवक्तव्य द्रव्यों में अल्प-बहुत्व न होने की बात कही गई है। इसका आशय यह है कि जब वे राशिगत रूप में होते हैं तब उनमें अनेकत्व नहीं होता। सभी एक-एक द्रव्य के रूप में स्वीकृत होते हैं। वहाँ अल्पबहुत्व का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता।
संग्रहनय सम्मत अनुगम प्रकरण में जो बहुवचन का प्रयोग हुआ है, उसे व्यवहारनयानुसार समझना चाहिये। अर्थात् इस तरह वे भिन्न-भिन्न भी हैं।
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