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________________ समवतार विवेचन भाव संबंध है। समुत्कीर्तन रूप कारण से उपदर्शन रूप कार्य सिद्ध होता है। इसीलिए उपदर्शन की प्रयोजनवत्ता है। (६४) भंगोपदर्शनता का स्वरूप से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया? संगहस्सभंगोवदंसणया तिपएसियाआणुपुव्वी १परमाणुपोग्गलाअणाणुपुव्वीर दुपएसिया अवत्तव्वए ३ अहवा तिपएसिया य परमाणुपुग्गला य आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य ४ अहवा तिपएसिया य दुपएसिया य आणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ५ अहवा परमाणुपोग्गला यं दुपएसिया य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ६ अहवा तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ७। सेत्तं संगहस्स भंगोवदंसणया। भावार्थ - संग्रहनय सम्मत भंगोपदर्शनता का क्या स्वरूप है? संग्रहनय सम्मत भंगोपदर्शनता के अन्तर्गत १. त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी २. परमाणु पुद्गल अनानुपूर्वी तथा ३. द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्य अथवा ४. त्रिप्रदेशिक, परमाणु पुद्गल आनुपूर्वीअनानुपूर्वी अंथवा ५. त्रिप्रदेशिक, द्विप्रदेशिक, आनुपूर्वी एवं अवक्तव्य अथवा ६. परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशिक, अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य अथवा ७. त्रिप्रदेशिक, परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशिक, आनुपूर्वी, । अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य हैं। (अर्थात् ये शब्दों के वाच्यार्थानुरूप विवक्षित होते हैं।) संग्रहनय सम्मत भंगोपदर्शनता का यह वर्णन है। (६५) समवतार विवेचन से किं तं संगहस्स समोयारे ? संगहस्स समोयारे (भणिजइ)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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