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________________ अर्थपद प्ररूपणता का स्वरूप एवं प्रयोजन शब्दार्थ - संगहस्स - संग्रहनय की। भावार्थ - संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी किस प्रकार की है? संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के पांच प्रकार बतलाए गए हैं, जो इस प्रकार हैं - १. अर्थ पद प्ररूपणता २. भंगसमुत्कीर्तनता ३. भंगोपदर्शनता ४. समवतार ५. अनुगम। (६२) अर्थपद प्ररूपणता का स्वरूप एवं प्रयोजन से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया? संगहस्स अट्ठपरूवणया-तिपएसिया आणुपुव्वी, चउप्पएसिया आणुपुव्वी जाव दसपएसिया आणुपुव्वी, संखिजपएसिया आणुपुव्वी, असंखिजपएसिया आणुपुव्वी, अणंतपएसिया आणुपुव्वी, परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वी, दुपएसिया अवत्तव्वए। से तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया। भावार्थ - संग्रहनय सम्मत अर्थ पदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है? संग्रहनय सम्मत अर्थ पद प्ररूपणता - त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी, चतुः प्रदेशिक आनुपूर्वी यावत् दस प्रदेशिक आनुपूर्वी, संख्येय प्रदेशिक आनुपूर्वी, असंख्येय प्रदेशिक आनुपूर्वी, अनंतप्रदेशिक आनुपूर्वी रूप. है। परमाणु पुद्गल अनानुपूर्वी रूप है। द्विप्रदेशिक (स्कन्ध) अवक्तव्य है। यह संग्रह नय की अर्थपद प्ररूपणता है। ___(६३) एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं? एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए भंगसमुक्कित्तणया कज्जइ। शब्दार्थ - एयाए - इसका, पओयणं - प्रयोजन, कज्जइ - किया जाता है। भावार्थ - संग्रहनय सम्मत इस अर्थपदप्ररूपणता का क्या प्रयोजन है? संग्रहनय सम्मत इस अर्थपद प्ररूपणता द्वारा संग्रहनयानुरूप भंग समुत्कीर्तनता की जाती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
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