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समवायांग सूत्र
उपशान्त कषाय गुणस्थान कहते हैं । १२. क्षपक यानी क्षीणकषाय- जिसमें मोहनीय कर्म की सभी प्रकृतियों का क्षय कर दिया जाता है उसे क्षीण कषाय गुणस्थान कहते हैं । १३. सयोगी केवली गुणस्थान जिन्होंने ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय इन चार घाती कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्त किया है उनके स्वरूप विशेष को
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योगी केवली गुणस्थान कहते हैं । १४. अयोगी केवली गुणस्थान- जिसमें केवली भगवान् मन वचन काया के तीनों योगों से रहित हो जाते हैं उसे अयोगी केवली गुणस्थान कहते हैं । भरत और ऐरावत प्रत्येक की जीवाएं १४४०१६ योजन की लम्बी हैं। प्रत्येक चक्रवर्ती के चौदह रत्न होते हैं। वे इस प्रकार हैं १. स्त्री रत्न संसार की समस्त स्त्रियों में प्रधान । २. सेनापति रत्न ३. गृहपति यानी भंडारी, ४. पुरोहित यानी शान्ति कर्म कराने वाला, ५. बढई - रथकार ६. अश्व रत्न, ७. हस्ती रत्न ८. असि रत्न, ९. दण्ड रत्न १०. चक्र रत्न ११. छत्र रत्न १२. चर्म रत्न, १३. मणि रत्न १४. काकिनी रत्न । ये चौदह अपनी अपनी जाति में सर्वोत्कृष्ट होते हैं, इसीलिए ये रत्न कहलाते हैं। इन चौदह में से पहले के सात रत्न पञ्चेन्द्रिय हैं। शेष सात रत्न एकेन्द्रिय हैं। इस जम्बूद्वीप में चौदह महानदियाँ पूर्व और पश्चिम की तरफ से लवण समुद्र में मिलती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं १. गङ्गा २. सिन्धु ३. रोहिता ४. रोहितंसा ५. हरी ६. हरिकान्ता ७. सीता, ८. सीतोदा ९. नरकान्ता १०. नारीकान्ता ११. सुवर्णकूला १२. रूप्यकूला १३. रक्ता १४. रक्तवती । इस रत्नप्रभा नामक पहली नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति चौदह पल्योपम की कही गई है। धूमप्रभा नामक पांचवीं नरक में कितनेक नैरयिकों की स्थिति चौदह सागरोपम की कही गई है। कितनेक असुर कुमार देवों की स्थिति चौदह पल्योपम कही गई है। सौधर्म और ईशान नामक पहले और दूसरे देवलोक में कितनेक देवों की स्थिति चौदह पल्योपम की कही गई है। छठे लान्तक देवलोक में देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागरोपम की कही गई है। महाशुक्र नामक़ सातवें देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति चौदह सागरोपम की कही गई है। महाशुक्र देवलोक के अन्तर्गत श्रीकान्त श्रीमहित श्रीसोमनस, लान्तक कापिष्ठ, माहेन्द्र कान्त, माहेन्द्रोत्तरावत्तंसक इन सात विमानों में जो देव देवरूप से उत्पन्न होते हैं उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौदह पल्योपम की कही गई है। वे देव चौदह पखवाड़ों से आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं और बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते हैं। उन देवों को चौदह हजार वर्षों से आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव सिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चौदह भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ॥ १४ ॥
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भगवानननननननन
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