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________________ ६६ समवायांग सूत्र आत्मप्रवाद पूर्व, विजाअणुप्पवायं पुव्वं - विद्यानुप्रवाद पूर्व, अबंझ - अवन्ध्य, किरियविसालपुव्वं - क्रिया विशाल पूर्व, वत्थु - वस्तु (अध्ययन), कम्मविसोहिमग्गणं - कर्मों की विशुद्धि मार्गणा, सासायण सम्मट्ठिी - सास्वादन सम्यग् दृष्टि, विरयाविरए - विरताविरत (देशविरत) णियट्टि बायरे - निवृत्ति बादर, सुहुमसंपराए - सूक्ष्म संपराय, उवसमए - उपशान्त कषाय, खवए - क्षपक (क्षीण कषाय) कागिणी रयणे - काकिणी रत्न, पुव्वावरेण - पूर्व और पश्चिम की तरफ से, समुप्पेंति - मिलती हैं। ___ भावार्थ - भूतग्राम यानी जीव समूह के चौदह भेद कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. सूक्ष्म अपर्याप्तक - जिन जीवों को सूक्ष्म नाम कर्म का उदय होता है उन्हें सूक्ष्म कहते हैं। सूक्ष्म जीव सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। जिस जीव में जितनी पर्याप्तियाँ सम्भव हैं यानी जिस जीव को जितनी पर्याप्तियाँ बांधना है, जब तक वह उतनी पर्याप्तियाँ नहीं बांध लेता तब तक वह अपर्याप्तक कहलाता है और अपने योग्य पर्याप्तियाँ पूरी बांध लेने पर पर्याप्तक कहलाता है। २. सूक्ष्म पर्याप्तक ३. बादर अपर्याप्तक, ४. बादर पर्याप्तक ५. बेइन्द्रिय अपर्याप्तक ६. बेइन्द्रिय पर्याप्तक ७. तेइन्द्रिय अपर्याप्तक ८. तेइन्द्रिय पर्याप्तक ९. चौरिन्द्रिय अपर्याप्तक १०. चौरिन्द्रिय पर्याप्तक ११. असंज्ञी यानी जिनके मन न हो ऐसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक १२. असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक १३. संज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तक १४. संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक। पूर्व-साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप चार तीर्थ की स्थापना करते समय तीर्थङ्कर भगवान् पहले पहल जिस अर्थ का उपदेश गणधरों को देते हैं अथवा गणधर पहले पहल जिस अर्थ को सूत्र रूप में गूंथते हैं उन्हें 'पूर्व' कहते हैं, वे चौदह कहे गये हैं उनके नाम इस प्रकार हैं - १ उत्पाद पूर्व - इसमें सभी द्रव्य और पर्यायों की उत्पत्ति का कथन है। २. अग्रायणीय पूर्व - इसमें सभी द्रव्य, पर्याय और जीवों के परिमाण का वर्णन है। ३. मा का वर्णन है। ८. कर्मप्रवाद पूर्व - इसमें आठ कर्मों का भेद प्रभेद सहित वर्णन है। ९. प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व - इसमें पच्चक्खाणों का वर्णन है। १०. विद्यानुप्रवाद पूर्व - इसमें विविध प्रकार की विद्या और सिद्धियों का वर्णन है। ११. अवन्ध्य पूर्व - इसमें अवन्ध्य यानी निष्फल न जाने वाले शुभ और अशुभ कार्यों का वर्णन है। १२. प्राणायुप्रवाद पूर्व - इसमें दस प्राण और आयु आदि का वर्णन है। १३. क्रियाविशाल पूर्व - इसमें कायिकी आदि क्रियाओं का विस्तृत वर्णन है। १४. बिन्दुसार पूर्व - इसमें सर्वश्रेष्ठ शास्त्रों का वर्णन है। दूसरे अग्रायणीय पूर्व की चौदह वस्तु. पानी अध्ययन कहे गये हैं। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के उत्कृष्ट श्रमण सम्पदा चौदह हसार थी अर्थात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समय में उनके साधुओं की संख्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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