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संघ का आगम प्रकाशन का काम पूर्ण हो चुका है। इस आगम प्रकाशन के कार्य में धर्म प्राण समाज रत्न तत्त्वज्ञ सुश्रावक श्री जशवंतलाल भाई शाह एवं श्राविका रत्न श्रीमती मंगला बहन शाह, बम्बई की गहन रुचि है। आपकी भावना है कि संघ द्वारा जितने भी आगम प्रकाशन हों वे अर्द्ध मूल्य में ही बिक्री के लिए पाठकों को उपलब्ध हो। इसके लिए उन्होंने सम्पूर्ण आर्थिक सहयोग प्रदान करने की आज्ञा प्रदान की है। तदनुसार प्रस्तुत आगम पाठकों को उपलब्ध कराया जा रहा है, संघ एवं पाठक वर्ग आपके इस सहयोग के लिए आभारी है।
आदरणीय शाह साहब तत्त्वज्ञ एवं आगमों के अच्छे ज्ञाता हैं। आप का अधिकांश समय । धर्म साधना आराधना में बीतता है। प्रसन्नता एवं गर्व तो इस बात का है कि आप स्वयं तो आगमों का पठन-पाठन करते ही हैं, पर आपके सम्पर्क में आने वाले चतुर्विध संघ के सदस्यों को भी आगम की वाचनादि देकर जिनशासन की खूब प्रभावना करते हैं। आज के इस हीयमान युग में आप जैसे तत्त्वज्ञ श्रावक रत्न का मिलना जिनशासन के लिए गौरव की बात है। आपके पुत्र रत्न मयंकभाई शाह एवं श्रेयांसभाई शाह भी आपके पद चिन्हों पर चलने वाले हैं। आप सभी को आगमों एवं थोकड़ों का गहन अभ्यास है। आपके धार्मिक जीवन को देख कर प्रमोद होता है। आप चिरायु हो एवं शासन की प्रभावना करते रहें, इसी भावना के साथ। ___जैसा कि पाठक बुन्धुओं को मालूम ही है कि वर्तमान में कागज एवं मुद्रण सामग्री के मूल्य में काफी वृद्धि हो चुकी है। फिर भी आदरणीय शाह साहब के आर्थिक सहयोग से इसका मूल्य मात्र रु० ४०) चालीस रुपया रखा है जो कि वर्तमान परिपेक्ष्य में ज्यादा नहीं है।
समवायांग सूत्र की प्रथम आवृत्ति का प्रकाशन अगस्त १९९७ में हुआ था। अब यह द्वितीय आवृत्ति पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है। आगम रसिक बंधु इससे अधिक से अधिक लाभान्वित हो, इसी शुभ भावना के साथ! ब्यावर (राज.)
संघ सेवक दिनांक १५-६-२००७
नेमीचन्द बांठिया श्री अ. भा. सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक संघ, ब्यावर
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