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________________ समवायांग सूत्र देव और चार जाति की देवियाँ, तिर्यञ्च, तिर्यञ्चणी मनुष्य मनुष्यणी यह बारह प्रकार की परिषद् उपस्थित थी किन्तु वह 'अभाविता' परिषद् थी । उसमें व्रतधारण करने की किसी में भी योग्यता नहीं थी । इसलिये वह पहली धर्मदेशना खाली गई । दूसरी देशमा अपापापुरी में हुई । वहाँ यज्ञ कराने के लिये इन्द्रभूति आदि ग्यारह महान् ब्राह्मण पंडित एकत्रित हुए थे। अपने मत की पुष्टि करने के लिये शास्त्रार्थ करने के लिये भगवान् के पास आये थे। अपने अपने संशय का संतोष जनक निवारण हो जाने पर वे भगवान् के शिष्य बन गये। उनके संशय नीचे लिखे अनुसार थे - ... १. इन्द्रभूति - जीव है या नहीं? २. अग्निभूति - ज्ञानावरण आदि कर्म हैं या नहीं? .. ३. वायुभूति - शरीर और जीव एक है या भिन्न-भिन्न? ४. व्यक्तस्वामी - पृथ्वी आदि भूत हैं या नहीं? ५. सुधर्मास्वामी - इसलोक में जो जैसा है, परलोक में भी वह वैसा ही रहता है या नहीं? ६. मंडित पुत्र - बंध और मोक्ष है या नहीं? ७. मौर्य पुत्र - देवता हैं या नहीं? ८. अकम्पित - नरक हैं या नहीं? ९. अचलभाता - पुण्य ही बढ़ने पर सुख और घटने पर दुःख का कारण हो जाता है या दुःख का कारण पाप पुण्य से अलग है? १०. मेतार्य - आत्मा की सत्ता होने पर भी परलोक है या नहीं? ११. प्रभास - मोक्ष है या नहीं? सभी गणधरों के संशय एवं उनका समाधान विशेषावश्यक भाष्य गाथा १५४७ से २०२४ तक में तथा हरिभद्रीयावश्यक में विस्तारपूर्वक दिया है। जिसका हिन्दी अनुवाद जैन सिद्धान्त बोल संग्रह चौथे भाग में है। बारहवां समवाय बारस भिक्खुपडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा - मासिया भिक्खुपडिमा, दोमासिया भिक्खुपडिमा, तिमासिया भिक्खुपडिमा, चउमासिया भिक्खुपडिमा, पंचमासिया भिक्खुपडिमा, छमासिया भिक्खुपडिमा, सत्तमासिया भिक्खुपडिमा, पढमा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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