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प्रकार के गणिपिटक यानी अंग सूत्रों का संक्षिप्त परिचय आश्रयण किया जाता है अर्थात् कहा जाता है। समवायाङ्ग की परिमित वाचनाएं और संख्यात इसके अनुयोग द्वार हैं, वेढ छन्दो विशेष-श्लोक, नियुक्ति, संग्रहणी और प्रतिपत्तियां ये सभी संख्यात है। अङ्ग की दृष्टि से वह समवाय चौथा अङ्ग है। इसका एक श्रुतस्कन्ध, एक उद्देशन काल और एक ही समुद्देशन काल है, पदाग्र से एक लाख चौआलीस हजार पद हैं, संख्यात अक्षर व अनन्त अर्थज्ञान हैं, अनन्त पर्याये हैं, परिमित त्रस अनन्त स्थावर और धर्मास्तिकायादि शाश्वत तथा प्रयोग आदि कृत से निबद्ध है, हेतु आदि से निर्णय प्राप्त जिन प्रणीत भाव इसमें कहे जाते है, प्रज्ञापन प्ररूपण, दर्शन निदर्शन और उपदर्शन से विशेष स्पष्ट किए जाते हैं, समवाय का वह पाठ तदात्मरूप बन जाता है तथा सूत्र के कथानुसार पदार्थों का ज्ञाता व ऐसे ही विज्ञाता होता है, इस प्रकार समवाय में चरणकरण की प्ररूपणा की जाती है, यह समवायाङ्ग चौथा अङ्ग हुआ। ___नंदी सूत्र में समायाङ्ग की जो विषय सूची है वह बहुत संक्षिप्त है, इसमें मात्र एक से
सौ तक की संख्या के विषयों का संकलन बताया है, जबकि समवायाङ्ग में सौवें समवाय के . बाद क्रमशः १५०-२००-२५०-३००-३५०-४००-४५०-५०० यावत् हजार से २००० से १०००० से एक लाख, उससे ८ लाख और करोड़ की संख्या वाले विभिन्न विषयों का इसमें संकलन किया गया है।
द्रव्य क्षेत्र काल भाव की दृष्टि से भी इसमें विशद वर्णन है, द्रव्य से जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश आदि का, क्षेत्र से लोक, अलोक, सिद्ध शिला आदि का, काल से समय, आवलिका, मुहूर्त आदि से लेकर पल्योपम, सागरोपम उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुद्गल-परार्वतन, चार गति के जीवों की स्थिति आदि का, भाव से ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य आदि जीव के भावों का निरूपण किया गया है। इसमें जीव-अजीव, भूगोल, खगोल, गणित, इतिहास आचार आदि शताधिक विषयों का संख्या की दृष्टि से संकलन इस तरह का है कि इसमें चारों अनुयोगों का समावेश हो जाता है।
समवायाङ्ग सूत्र के विभिन्न विषयों का जितना संकलन हुआ है, उतने विषयों का एक साथ संकलन अन्य आगमों में बहुत कम हुआ है। इसलिए ही तो व्यवहार सूत्र में व्यवस्था दी गई है कि स्थानांग और समवायाङ्ग का ज्ञाता ही आचार्य और उपाध्याय जैसे गौरवपूर्ण पद को धारण करने के अधिकारी है क्योंकि इन दो सूत्रों में उन सभी विषयों की संक्षेप में
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