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________________ ३४ समवायांग सूत्र m39 . से तो प्रत्येक व्यक्ति साढ़े तीन हाथ का ही होता है। भगवान् ऋषभदेव भी उनके खुद के अङ्गल से तो साढ़े तीन हाथ के ही थे । उत्सेधाङ्गल से पांच सौ धनुष के थे। महाविदेह क्षेत्र के सभी तीथङ्कर पांच सौ धनुष के ही होते हैं। किन्तु भरत और ऐरवत क्षेत्र के तीर्थङ्करों के शरीर की अवगाहना एक सरीखी नहीं होती है। इस अवसर्पिणी काल के तीर्थङ्करों की अवगाहना इस प्रकार है - १. श्री ऋषभदेवजी ५०० धनुष २. श्री अजितनाथजी ४५० धनुष ३. श्री सम्भवनाथ जी ४०० धनुष ४. श्री अभिनन्दनस्वामी ३५० धनुष ५. श्री सुमतिनाथजी ३०० धनुष ६. श्री पद्मप्रभस्वामी २५० धनुष ७. श्री सुपार्श्वनाथस्वामी २०० धनुष ८. श्री चन्द्रप्रभ स्वामी - १५० धनुष ९. श्री सुविधिनाथ स्वामी १०० धनुष १०. श्री शीतलनाथस्वामी .९० धनुष (श्री पुष्पदंतस्वामी) ११. श्री श्रेयांसनाथ स्वामी ८० धनुष १२. श्री वासुपूज्य स्वामी ७० धनुष १३. श्री विमलनाथ स्वामी ६० धनुष १४. श्री अनन्तनाथ स्वामी ५० धेनुष : १५. श्री धर्मनाथ स्वामी ४५ धनुष १६. श्री शान्तितनाथ स्वामी ४० धनुष १७. श्री कुंथुनाथ स्वामी ३५ धनुष १८. श्री अरनाथ स्वामी ३० धनुष १९. श्री मल्लिनाथ स्वामी २५ धनुष २०. श्री मुनिसुव्रत स्वामी २० धनुष २१. श्री नमिनाथस्वामी १५ धनुष २२. श्री अरिष्टनेमि स्वामी १० धनुष २३. श्री पार्श्वनाथ स्वामी ०९ हाथ २४. श्री महावीर स्वामी ०७ हाथ (श्री वर्धमान स्वामी) यह अवसर्पिणी काल के तीर्थङ्करों की अवगाहना बतलाई गयी है। उत्सर्पिणी काल के तीर्थङ्करों की अवगाहना उपरोक्त क्रम से विपरीत समझना चाहिए। जैसे कि - पहले तीर्थङ्कर की अवगाहना ७ हाथ यावत् चौबीसवें तीर्थङ्कर की अवगाहना ५०० धनुष की होती है। ___मनुष्यों के रहने के स्थान को वास (निवास, वर्ष, क्षेत्र) कहते हैं। उन वास (क्षेत्र) की मर्यादा करने वाले पर्वतों को वासहर (वर्षधर) पर्वत कहते हैं। इस जम्बूद्वीप में सात वास (वर्ष-क्षेत्र) हैं और सात ही वर्षधर पर्वत हैं। जिनके नाम ऊपर मूलपाठ और भावार्थ में बता दिये गये हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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