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________________ ४३२ समवायांग सूत्र MARATIMINIMHARAMINIMIMARATHIMIMINANTARNIRMIRMIRMIRRITAINMAMMA INDIAN प्रतिवासुदेव हुए थे । ये सब चक्र से युद्ध करने वाले थे और ये सब अपने ही चक्र से मारे गये थे ।। ६५-६६॥ एक वासुदेव सातवीं नरक में गया। पांच वासुदेव छठी नरक में, एक वासुदेव पांचवीं नरक में, एक वासुदेव चौथी नरक में और कृष्ण वासुदेव तीसरी नरक में गये ।। ६७॥. ___ सब बलदेव नियाणा किये बिना होते हैं और सब वासुदेव नियाणा करके ही होते हैं। सब बलदेव ऊर्ध्वगामी होते हैं अर्थात् मर कर स्वर्ग में जाते हैं अथवा मोक्ष में जाते हैं और सब वासुदेव अधोगामी होते हैं अर्थात् मर कर नरक में ही जाते हैं।। ६८॥ ऊपर कहे हुए बलदेवों में से आठ बलदेव कर्मों का सर्वथा क्षय कर मोक्ष में गये और एक बलभद्र नामक बलदेव (श्रीकृष्ण के बड़े भाई) पांचवें ब्रह्म देवलोक में गया। वहां से चव कर वह एक गर्भवास अर्थात् मनुष्य भव धारण करके फिर वह सिद्धिगति को प्राप्त करेगा ।। ६९॥ . वर्तमान ऐरवत तीर्थंकरों के नाम जंबूहीवे णं दीवे एरवए वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउव्वीसं तित्थयरा होत्था, तंजहा - चंदाणणं सुचंदं, अग्गिसेणं च णंदिसेणं च । इसिदिण्णं ववहारि, वंदिमो सोमचंदं च ॥ ७॥ वंदामि जुत्तिसेणं, अजियसेणं तहेव सिवसेणं । बुद्धं च देवसम्मं, सययं णिक्खित्तसत्थं च ॥७१॥ असंजलं जिणवसहं, वंदे य अणंतयं अमियणाणिं । . उवसंतं च धुयरयं, वंदे खलु गुत्तिसेणं च ॥७२॥ अइपासं च सुपासं, देवेसरवंदियं च मरुदेवं । णिव्वाण गयं च धरं, खीणदुहं सामकोटुं च ॥७३॥ जियरागमग्गिसेणं वंदे, खीणरायमग्गिउत्तं च । वोक्कसिय पिज्जदोसं, वारिसेणं गयं सिद्धिं ।।७४॥ . कठिन शब्दार्थ - एरवर वासे - ऐरवत क्षेत्र में, अमियणाणी - अमितज्ञानी सर्वज्ञ, धूयरयं - कर्मरज से रहित, णिव्याणगयं - निर्वाण को प्राप्त, खीणदुहं - दुःखों का विनाश करने वाले, जियरागं - राग द्वेष के विजेता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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