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________________ नौ बलदेवों की माताओं के नाम ४२७ सागर होते हैं, रणभूमि में दुर्द्धर, धनुर्धारी, धैर्ययुक्त, युद्ध से कीर्ति उपार्जन करने वाले होते हैं, विपुल कुल में उत्पन्न होने वाले होते हैं, अपने अंगुठे और अंगुली से वज्र का भी चूर्ण कर देने वाले होते हैं, वे अर्द्ध भरत क्षेत्र के स्वामी होते हैं, सौम्य अर्थात् नीरोग होते हैं, वे राजकुलवंश में तिलक के समान होते हैं, वे अजेय होते हैं अर्थात् उन्हें कोई नहीं जीत सकता है, उनके रथ भी अजेय होते हैं, बलदेव हल मूसल और बाणों को धारण करते हैं, वासुदेव शाङ्ग धनुष, पाञ्चजन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कौमुदी गदा, शक्ति नामक त्रिशूल और नन्दक नामक खड्ग (तलवार) धारण करते हैं, निर्मल कौस्तुभ मणि वासुदेव के वक्षस्थल को विभूषित करता है और उनके मस्तक पर तिरीट यानी मुकुट होता है, कुण्डलों से उनका मुख उदयोतित होता है, उनके नेत्र विकसित पुण्डरीक यानी कमल के समान होते हैं, उनके गले में एकावली हार होता है, छाती पर श्रीवत्स का शुभ लक्षण होता है, उनका यश निर्मल होता है, सभी ऋतुओं के सुगन्धित फूलों से बनी हुई, सुखदायिनी लम्बी विचित्र वनमाला उनके वक्षस्थल पर विराजमान होती है, स्वस्तिक आदि जो १०८ शुभ लक्षण पुरुषों के होते हैं, उन सभी प्रशस्त सुन्दर शुभ लक्षणों से उनके अङ्ग उपांग सुशोभित होते हैं, वे ऐरावत हाथी की तरह ललित विक्रम एवं विलास के साथ गति करते हैं, शरत्कालीन नूतन मेघ की गर्जना के समान उनकी दुन्दुभि का शब्द गम्भीर और मधुर होता है, बलदेव नीले रंग के रेशमी वस्त्र पहनते हैं और वासुदेव पीले रंग के सुन्दर रेशमी वस्त्र पहनते हैं तथा उनकी कमर पर करघनी (कन्दोरा) शोभा पाती है, वे उत्कृष्ट तेज वाले होते हैं, वे मनुष्यों में सिंह के समान होते हैं, वे मनुष्यों के स्वामी होते हैं, वे मनुष्यों में इन्द्र के समान होते हैं तथा सर्वश्रेष्ठ होने से वे नरवृषभ कहलाते हैं। जैसे मारवाड़ का धोरी बैल (नागौरी बैल) उठाये हुए भार को यथा स्थान पहुँचा देता है अर्थात् उठाये हुए कार्य को पूर्ण करने वाले होते हैं, वे इन्द्र के समान होते हैं, वे राज्यलक्ष्मी के तेज से अत्यधिक दीप्त होते हैं, बलदेव नीले रेशमी वस्त्र पहनते हैं और वासुदेव पीले रेशमी वस्त्र पहनते हैं, ऐसे वे दो दो बलदेव और वासुदेव भाई भाई हुए थे अर्थात् नौ बलदेव और नौ वासुदेव हुए थे, उनके नाम इस प्रकार थे - १. त्रिपृष्ठ, २. द्विपृष्ठ, ३. स्वयंभू, ४. पुरुषोत्तम, ५. पुरुषसिंह, ६. पुरुष पुण्डरीक, ७. दत्त, ८. नारायण लक्ष्मण और ९. कृष्ण । ये नौ वासुदेवों के नाम थे । नौ बलदेवों के नाम इस प्रकार थे - १. अचल, २. विजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन, ६. आनन्द, ७. नन्दन, ८. पद्म (दशरथपुत्र रामचन्द्र-लक्ष्मण के बड़े भाई) और ९. राम (कृष्ण के बड़े भाई बलभद्र-बलराम)। ये नौ बलदेवों के नाम थे ।। ५६-५७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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