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नौ बलदेवों की माताओं के नाम
कोसेज्जवाससा, पवरदित्ततेया, णरसीहा, णरवई, णरिंदा, णरवसहा, मरुयवसभकप्पा, अब्भहियरायतेयलच्छीए दिप्पमाणा, णीलगपीयगवसणा दुवे दुवे रामकेसवा भायरो होत्था, तंजहा -
तिविट्ठे दुविट्ठे य, संयभू पुरिसुत्तमे पुरिससीहे । तह पुरिस पुंडरीए, दत्ते णारायणे कण्हे ॥ ५६॥ अयले विजए भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे । आणंदे णंदणे पउमे, रामे यावि अपच्छिमे ॥ ५७ ॥ कठिन शब्दार्थ दसार मंडला - दर्शाह मण्डल, ओयंसी - ओजस्वी, तेयंसी तेजस्वी, वच्छंसी - वर्चस्वी, जसंसी - यशस्वी, छायंसी - शोभित शरीर वाले, सव्वजण यण कंता - सभी मनुष्यों के नेत्रों को प्रिय लगने वाले, ओहबला - ओघबली, सत्तुमद्दणाशत्रु का मर्दन करने वाले, मियमंजुलपलावहसिया परिमित मधुर भाषण करने वाले और ईषत् हास्य करने वाले, अब्भुवगयवच्छला - अभ्युगत-शरण में आये हुए शरणागत के प्रति वात्सल्यभाव के धारक, लक्खणवंजणगुणोववेया - शुभ लक्षणों, व्यंजनों एवं गुणों से युक्त, माणुम्माणपमाण- पडिपुण्णसुजायसव्वंग सुंदरंगा - उनके सभी अंगोपांग सुन्दर, मान उन्मान तथा प्रमाण युक्त होते हैं, ससिसोमागारकंतपियदंसणा उनकी आकृति चन्द्रमा के समान सौम्य मनोहर होती है। जो देखने में बड़ी ही प्रिय लगती है, अमरिसणा अमर्षण, अमृसण, क्षमाशील, महाधणु विकट्टया महान् धनुष को खींचने वाले, महासत्तसायरा - महान् पराक्रम के सागर, दुद्धरा - दुर्द्धर, धणुद्धरा- धनुर्धारी, धीरपुरिसाधैर्य युक्त- धीर, रायकुलवंसतिलया - राजकुलवंश में तिलक के समान, अजिया - अजेय, हलमुसलकणकपाणी - बलदेव हल, मूसल और बाणों को धारण करते हैं, संखचक्कगयसत्तिणंदगधरा - वासुदेव पाञ्चजन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कौमुदी गदा, शक्ति नामक त्रिशूल और नंदक नामक खड्ग धारण करते हैं, पवरुज्जलसुक्कंतविमल गोथुभतिरीडधारी निर्मल कौस्तुभ मणि वासुदेव के वक्ष स्थल को विभूषित करता है, उनके मस्तक पर तिरीट यानी मुकुट होता है, अट्ठसयविभत्तलक्खणपसत्थसुंदर विरइयंगमंगा - स्वस्तिक आदि १०८ प्रशस्त सुन्दर शुभ लक्षणों से उनके अंग उपांग सुशोभित होते हैं । मत्तगयवरिंदललित विक्कम विलसिय गई - वे ऐरावत हाथी की तरह ललित विक्रम एवं विलास युक्त गति वाले होते हैं।
भावार्थ
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इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में नौ दशार्ह मण्डल
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